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जो लिखा था, सब मिटाती हूँ!

jo likha tha, sab mitati hoon!

श्रेया शिवमूर्ति

श्रेया शिवमूर्ति

जो लिखा था, सब मिटाती हूँ!

श्रेया शिवमूर्ति

और अधिकश्रेया शिवमूर्ति

    मैं अब कुछ भी नया नहीं लिखती

    जो लिखा था, वो सब मिटाती हूँ

    अपने हिस्से की धूप, सफ़र के काँटें

    ज़िम्मेदारियों की सिसकियाँ

    मनमौजी होने की फब्तियाँ

    और खुले मन से सभी आफ़तों को दावत देने वाली आदत

    सबको पीछे छोड़ दिया है

    मैंने ख़ुद वादा किया है

    छाँव को दूर तलक बिझाऊँगी

    सफ़र के काँटों को खाई में फेक आऊँगी

    सिसकियों-फब्तियों से कोई नई धुन बनाऊँगी

    और आफतों का पीछा करते-करते…डर-संकोच-झिझक और

    ‘स्त्री है—कुछ भी कर सकती है’ के मज़ाकिया लहज़े के बौनेपन में

    उलझी मानसिकता से भी नहीं घबराऊँगी

    मैं बीते कल की बातें नहीं दोहराऊँगी

    आने वाले कल के स्वागत में अपने माथे पर लगा

    विजय तिलक अपने हाँथो से हटाऊँगी

    क्योंकि विजय तिलक के बाद विजय पताकाएँ फहरानी होंगी

    और विजयी होने के बाद लिख दिया जाएगा

    मेरा संघर्ष कागज़ के कुछ टुकड़ों पर

    मुझे मेरा संघर्ष जीना है…

    जीते देखना है मेरे आदर्शों को

    विजय गाथाएँ गानी हैं…

    सबको सुनानी हैं

    लोगों को विजय गान याद होना चाहिए

    संघर्ष का दस्तावेज़ अलमारियों में सजाने के लिए नहीं होना चाहिए

    संघर्ष गाने के लिए होना चाहिए और सबके मन पर छा जाने के लिए भी

    इसीलिए अब मैं कुछ भी नया नहीं लिखती

    जो कुछ भी लिखा है उसे मिटाती हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रेया शिवमूर्ति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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