दुनिया के विनाश पर
मौत के बाद
पाया मैंने। जीवन के बीच में।
रचते ख़ुद को
बनाते जीवन
लोगबाग, पशु, प्राकृतिक दृश्य
यह मेज़ है : कहा मैंने
यह मेज़ है
मेज़ पर पड़ी है : डबल रोटी, छुरी
छुरी काम आती है रोटी काटने के
रोटी से तंदुरुस्त बनते हैं लोग
आदमी को प्यार किया जाना चाहिए
छोड़ा मैंने / दिन और रात
किसे प्यार करना चाहिए :
आदमी को जवाब देता था मैं।
यह खिड़की है : कहा मैंने
यह खिड़की है
खिड़की के सामने है बाग़
बाग़ में दिखते हैं सेब
सेब फूलते हैं
फूल झर जाते हैं
बन जाते हैं फल, पक जाते हैं वे।
मेरे पिता उठाते हैं सेब
वह आदमी! जो सेब उठाता है
मेरा पिता है।
बैठा मैं घर की दहलीज़ पर
वह बुढ़िया
रस्सी से खींचती है बकरी
ज़्यादा ज़रूरी है
बहुमूल्य है
दुनिया के सातों आश्चर्यों से भी
जो सोचता महसूस करता कि
वह ज़रूरी नहीं
नरसंहारक है वह।
यह आदमी है / यह पेड़ है / यह है रोटी
लोग खाते हैं इसे / ज़िंदगी के लिए।
दोहराता था मैं।
आदमी की ज़िंदगी क़ीमती है
आदमी की ज़िंदगी है महत्त्वपूर्ण
ज़िंदगी की क़ीमत
तमाम चीज़ों की क़ीमतों से ऊँची है :
जिन्हें आदमी ने बनाया
आदमी है बड़ा ख़ज़ाना
दुहराता था मैं बार-बार।
यह पानी है—कहता था मैं
सहलाता था लहरें हाथ से
बतियाता था नदी से
मैं कहता था : पानी
हे पवित्र जल ये मैं हूँ।
आदमी ने जल से कहा
और कहा चंद्रमा से
फूलों से बारिश से
कहा धरती से। चिड़ियों से
आकाश से
चुप था आकाश / चुप थी धरती
अगर सुनी गई आवाज़
जो थी पानी के बहने की
धरती से आकाश से
वह आवाज़ थी दूसरे आदमी की।
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 153)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : तादेऊष रूज़ेविच
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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