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जंगल, गाँव और आदमी

jangal, gaanv aur adami

तजेंद्र सिंह लूथरा

अन्य

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तजेंद्र सिंह लूथरा

जंगल, गाँव और आदमी

तजेंद्र सिंह लूथरा

और अधिकतजेंद्र सिंह लूथरा

    मैं ये नहीं हूँ

    ये बस विचार है मेरा

    मैं वो भी नहीं हूँ

    वो बस आदर्श है मेरा

    और यह भी नहीं हूँ मैं

    यह तो विचारधारा है मेरी

    इन सबको कटघरे में खड़ाकर

    मुझे पूछने है इनसे कई

    तीख़े प्रश्न।

    क्या तुम हो अजर-अमर

    या तुम अपने ही बोझ से

    दब जाओगे एक दिन

    और छोड़ दोगे मुझे

    शरणार्थी बनाकर।

    तुम्हें कितना

    और कब तक ढोहना ज़रूरी है

    तुम्हारी रोशनी

    क्या दिखा पाएगी राक्षस

    और पार करा पाएगी अंध गुफ़ा

    तुम बना सकोगे कोई पुल

    उफनते दरिया पे

    क्या तुम अब भी

    निकाल पाओगे मुझे

    घनघोर जंगल से

    और हाथ पकड़ ले जा सकोगे

    जहाँ बसता है एक छोटा गाँव

    जहाँ रहते हैं सीधे-साधे आदमी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : तजेंद्र सिंह लूथरा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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