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जंग तुम्हारे ख़िलाफ़

jang tumhare khilaf

अशोक भारती

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अशोक भारती

जंग तुम्हारे ख़िलाफ़

अशोक भारती

और अधिकअशोक भारती

    सिपाही,

    और बार-बार हमें ‘महान राष्ट्र’ घोषित करना,

    महज़ संयोग नहीं था।

    गलियों और सड़कों पर जलती लाशें,

    घर-आँगन में बेसहारा औरतें,

    अरवल के साठ शहीद और

    रह-रहकर भेड़ियों का गुर्राना,

    महज़ संयोग नहीं हो सकता।

    मज़दूरों को बाँधने का इरादा,

    किसानों को फोड़ने की कोशिशें,

    बोफ़ोर्स, मलियाना, जहानाबाद, और

    मेरा गला घोंटने की साज़िश,

    एक ही पासे के तो पहलू हैं।

    मैं जानता हूँ :

    यह तुम्हारा अघोषित युद्ध है, और

    क़ानून-बंदूक़-भ्रष्ट्राचार तुम्हारे हथियार,

    अब बारी जनता की है कि

    वह घोषित करे जंग तुम्हारे ख़िलाफ़।

    दिया और रोशनी

    दिया,

    अँधेरी झोंपड़ियों का नसीब है,

    और सूरज,

    विशाल अट्टालिकाओं का ग़ुलाम,

    यह हालत यूँ ही नहीं बदलेगी।

    सदियों के घनघोर अँधेरे में,

    झोपड़ियाँ बदहवास हैं,

    चेतना नींद में डूबी है

    और विद्रोही ताक़त,

    खटते-खटते ख़त्म हो चुकी है।

    फिर भी दिया,

    अँधेरे के ख़िलाफ़ एक सुगबुगाहट है,

    और अब झोपड़ियों की बारी है,

    अट्टालिकाओं में क़ैद सूरज की,

    रोशनी को आज़ाद कराने की।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दलित निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 195)
    • संपादक : कँवल भारती
    • रचनाकार : अशोक भारती
    • प्रकाशन : इतिहासबोध प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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