जैव विकास
jaiv vikas
जैसे हम आज हैं
हो सकता है—ऐसा पहले न रहे हों
हो सकता है—करोड़ों साल पहले
हमारे पुरखे साझा रहे हों
गाढ़ा प्रेम रहा हो उनमें
यह तो मानी बात है—
हम आदिम जीव-द्रव्य की आधुनिक निशानी हैं!
देखो—
नफ़रत की इस मटमैली चादर के सिवा
साझेपन की कितनी असीम संभावनाओं से लैस हैं हम
हमारी तलाश साझी है दोस्त
हमें कोमल बदन आदिजीवी पुरखों को खोजना है
इसलिए हमें तलाशने होंगे
करोंड़ों साल पुराने पहाड़ को
छींटदार चट्टानों को
ताकि धधकती धरती को शीतल करने वाली
आदिम जीव-द्रव्य को संभव करने वाली
आदिम बारिश की बूँदों की छाप खोज ली जाएँ
उन्हें संरक्षित कर लिया जाए
न सिर्फ़ म्यूजियम में
बल्कि अरबों हृदयों में भी...
साथ ही हमें तलाशने होंगे
समुद्र की पेट में खड़े पत्थर की कड़ियों को
ताकि साँस लेने के पहले वाला जीव खोज लिया जाए
और हम बता सकें–
कि साँस लेने के पहले से हम थे
सांस लेने की क्षमता के बाद हम एक हैं
सोचो कितना काम पड़ा हमारे बीच
लड़ाई छोड़ी जाए
आगे बढ़ा जाए
आदि जीव-द्रव्य को खोजा जाए
ताकि आदिम साझेपन का पुरुत्पादन संभव हो सके...
- रचनाकार : जनार्दन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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