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जब दरोगा बनि जइबा

jab daroga bani jaiba

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जब दरोगा बनि जइबा

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    अब तौ हमहूँ दरोगा बनि जइबा हो

    सबते जादा पइसा हमहूँ कमइबा हो

    सब अड्डा मैंनेजर बदलिबि ढेर कमीसन लेइबि

    फिरी की गाड़ी फिरी का खाना दुइ पइसा ना देइबि

    चोरन कहियाँ दोस बनइबै आधा हिस्सा मिलिहै

    कुछ दइ देइबि थानेदार का जो कहुँ ज्यादा पिलिहै

    फिरि सब नहरि किनारे के बिरवा कटवइबा हो

    अब तौ हमहूँ दरोगा बनि जइबा हो

    जुआँ खेलइबै हम होनइ पर जहाँ जुँआरी कहिहैं

    नाली, कब्जा, कट्टा केरे मैटर अउतइ रहिहैं

    गाँजा भाँग अफीमउ बिकिहै हमरे करे इसारा

    धन कुबेर का हमरे बदिका खुलहइ बड़ा पिटारा

    जब हम खूब धड़ल्ले से दारू बनवइबा हो

    अब तौ हमहूँ दरोगा बनि जइबा हो

    कतल करइ मा लाखा परिहैं एडवाँन्सउ है आधा

    लइ बन्दूख अजर्रा घूमइ बिन रिपोट बिन बाधा

    पइसा वालेन का फर्जी हम पकरिके थाने लइबा

    नाउ निकारइ मा लेइबि नहि तौ चालान पठइबा

    थोरे दै बहादुरी पेपर मा छपवइबा हो

    अब तौ हमहूँ दरोगा बनि जइबा हो

    डेण्डकि दम पर कुछु कुतवन का हम भेड़हा बनवइबा

    घटना कम परिहै तौ हम फिरि छेड़छाड़ करवइबा

    कन्डीडेट अपन लइके फिरि गैंगरेप करवइबै

    सरकारउ से जौनु मिली वहु आधा-आधा खइबै

    वहउ खुस हुइ जइहै हमहूँ मुस्कइबा हो

    अब तौ हमहूँ दरोगा बनि जइबा हो

    सबसे जादा पैसा हमहू कमइबा हो

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 27)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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