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इससे ही पहचाना जाता है एक कवि

isse hi pahchana jata hai ek kawi

केशव तिवारी

अन्य

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केशव तिवारी

इससे ही पहचाना जाता है एक कवि

केशव तिवारी

और अधिककेशव तिवारी

    कितने बरस से रह रहा हूँ

    इस शहर में मैं

    फिर भी

    अक्सर भटक ही जाता हूँ

    इसकी टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में

    ठीक वैसे ही जैसे एक कवि

    कभी-कभी भटक जाता है

    अपने बिंबों और कथ्य के बीच

    इस शहर में घूमना

    कविता लिखने जैसा ही

    अनुभव है मेरे लिए

    जहाँ नदी और पहाड़ ही नहीं

    छोटे-छोटे चाय-पान के खोखे

    सड़कों पर चल रहे रिक्शे-ताँगे

    इधर-उधर गप्प हाँकते लोग

    एक कविता ही रच रहे होते हैं

    इसके और कविता के

    अंतर्संबंधों को पहचानने में लगा

    एक कवि

    इससे ही पहचाना जाता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : केशव तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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