इस उठान के बाद नदी

is uthan ke baad nadi

अजेय

अजेय

इस उठान के बाद नदी

अजेय

और अधिकअजेय

    इस नदी को देखने लिए

    आप इसके एकदम क़रीब जाएँ

    घिस-घिस कर कैसे कठोर हुए हैं और सुंदर

    कितने ही रंग और बनक लिए पत्थर

    उतरती रही होंगी

    पिछली कितनी ही उठानों पर

    भुरभुरी पोशाकें इनकी

    कि गुमसुम धूप खा रहीं

    उकड़ूँ ध्यान मगन

    और पसरी हुई कोई ठाठ से

    आज जब उतर चुका है पानी

    अलग-अलग बिछे हुए

    पेड़

    मवेशी

    कनस्तर

    डिब्बे

    लत्ते

    ढेले

    कंकर

    रेत...

    कि नदी के बाहर भी बह रही थीं

    कुछ नदियाँ शायद

    उन्हें क़रीब से देखने की ज़रूरत थी।

    कुछ बच्चे मालामाल हो गए अचानक

    खँगालते हुए

    लदे-फदे

    ताज़ा कटे कछार

    अच्छे से ठोक ठुड़क कर छाँट लेते हर दिन

    पूरा एक ख़ज़ाना

    तुम चुन लो अपना एक शंकर

    और मुट्ठी भर उसके गण

    मैं कोई बुद्ध देखता हूँ अपने लिए

    हो सके तो एकाध अनुगामी श्रमण

    और खेलेंगे भगवान-भगवान दिन भर।

    ठूँस लें अपनी जेबों में आप भी

    ये जो बिखरी हुई हैं नेमतें

    शाम घिरने से पहले

    वह जो नदी के बाहर है वरना

    पानी के अलावा

    जिसकी अपनी अलग ही एक हरारत है

    बहा ले जाएगा गुपचुप अपनी बिछाई हुई चीज़ें

    आने वाले किसी भी अँधेरे में

    आप आएँ

    आप आएँ

    और देख लें इस भरी-पूरी नदी को

    यहाँ एकदम क़रीब आकर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अजेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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