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इंतज़ाम जारी है

intzam jari hai

मोना गुलाटी

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मोना गुलाटी

इंतज़ाम जारी है

मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    कितने दिन किसके बाक़ी हैं

    क्या मातम! कब किसको

    जाना पड़ेगा।

    अपनी आवाज़ को यहीं छोड़कर

    हथेलियों में!

    क्या मालूम!

    रात होते ही ख़ूँख़ार बिल्ली तीखे पंजे और नुकीली आँखें

    लिए मेरी गर्दन पर वार करती है

    मेरी जीभ

    लटकने लगती है और वहशी आवाज़ें

    मुझे घेर लेती हैं।

    आदमी की नसें कब जवाब दे जाएँगी

    इसका कोई हिसाब

    नहीं : नफ़रत या प्यार दोनों को

    मापतोल कर आदमी

    की जिस्मानी बोतल में भरा जा सकता :

    अनुभव से आदमी मात्र

    इतना ही सीखता है कि

    ज़हर को किस मात्रा में घोला जाए कि

    मौत पचास साल की उम्र में हो :

    चालीस में नहीं!

    नफ़रत और प्यार दोनों करिश्मे हैं :

    झरने हैं

    पहाड़, नदी, नाले हैं : रेगिस्तान और

    तिलस्म हैं

    इन्हें सावधानी से खोलना पड़ता है : दिन और

    रात गिनते हुए :

    पीढ़ी दर पीढ़ी

    ताकि विस्फोट की संभावनाएँ चाहे रहें : पर विस्फोट हो।

    नफ़रत और प्यार दोनों विस्फोटक वहशी हैं

    ख़ूँख़ार और जानदार।

    इनको बाँधने के लिए शताब्दियों के पिंजड़ों का

    इंतज़ाम करना पड़ता है!

    और

    इंतज़ाम जारी है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी

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