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हंस गीत

hans geet

अनुवाद : शिवकुटी लाल वर्मा

डब्ल्यू. एस. रेण्ड्रा

और अधिकडब्ल्यू. एस. रेण्ड्रा

    चकलाघर के मालिक ने उससे कहा :

    'तुम इधर दो सप्ताह से ढली लग रही हो

    तुम बीमार चल रही हो

    तुम कुछ भी पैसा नहीं ला रही हो

    दरअसल मेरा ऋण है तुम्हारे ऊपर

    मुझे धन गँवाना पसंद नहीं

    मैं तुम्हें और अधिक नहीं रख सकता

    यह स्थान

    तुम्हें आज ही छोड़ना पड़ेगा।'

    (वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    जिसके चेहरे पर चमक और विद्वेष है

    जलती है जिसकी तलवार

    मेरी ओर अभियोग की मुद्रा में संकेत करता है

    मेरा नाम मारिया ज़ैतून है

    जो बहुत सुंदर भी नहीं और बहुत बूढ़ी है।)

    दुपहर के बारह बजे

    सूरज आकाश की ऊँचाई पर

    हवा बादल

    मारिया ज़ैतून वेश्यालय छोड़ रही है

    कोई सूटकेस नहीं

    कोई सामान नहीं

    उसकी सहेलियाँ दूसरी ओर देख रही हैं

    शरीर में ज्वर

    सिफ़लिस से जल रही है वह

    गला, आँख, स्तन

    और उरु-संधि में फोड़े

    उसकी आँखें लाल हैं

    होंठ सूखे हुए हैं

    मसूड़ों से रक्त बह रहा है

    उसका हृदय-रोग फिर पीड़ित कर रहा है उसे

    वह डॉक्टर के यहाँ जाती है

    जहाँ उसके पहले से बहुत सारे लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं

    वह उनके बीच बैठ जाती है

    सहसा वे अपनी नाक दबाए हुए एक ओर खिसक जाते हैं

    वह ग़ुस्से में कोसने लगती है

    नर्स जल्दी से उसकी बाँह पकड़ती है

    उसकी बारी आने के पहले ही

    वह उनके सामने से उसे ले जाती है

    और कोई कुछ नहीं बोलता

    ‘मारिया ज़ैतून

    तुम्हारे ऊपर मेरे कुछ रुपये बाक़ी हैं' डॉक्टर कहता है

    ‘हाँ' वह उत्तर देती है

    'तुम्हारे पास अभी कितना पैसा है?'

    'कुछ भी नहीं'

    डॉक्टर सर झटकता है और उसे कपड़े उतारने का आदेश देता है

    अपना ब्लाउज़ खोलते हुए उसे पीड़ा महसूस होती है

    उसकी काँख के फोड़े से वह चिपक जाता है

    ‘इतना काफ़ी है' डॉक्टर कहता है

    बग़ैर उसका परीक्षण किए हुए

    वह नर्स से फुसफुसाकर कहता है

    ‘उसे विटामिन सी का एक इंजेक्शन दे दो'

    चौंककर नर्स धीमे-से कहती है :

    ‘विटामिन सी?

    डॉक्टर, क्या वह सलवरसान से ठीक नहीं हो सकती?'

    'क्यों?

    उसके पास देने को कुछ नहीं है

    और यह मृतप्राय है

    उसे विदेश की क़ीमती दवाएँ क्यों दी जाएँ।'

    (वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    जिसका चेहरा द्वेषपूर्ण और दुर्भावभरा है

    जलती है जिसकी तलवार

    मेरी ओर अभियोग की मुद्रा में संकेत करता है

    मैं भय से काँप उठती हूँ

    मैं कुछ भी महसूस नहीं कर पाती, सोच नहीं पाती।

    मेरा नाम मारिया ज़ैतून है

    एक अभागिन और भयभीत वेश्या)।

    दुपहर एक बजे

    सूर्य अब भी अपने शिखर पर,

    मारिया ज़ैतून बग़ैर जूते के चली जा रही है

    और घटिया क़िस्म का डामर उसके पैरों तले

    पिघल रहा है

    वह गिरजाघर की ओर जाती है

    जहाँ ताला बंद है

    क्योंकि वे चोरों से भयभीत हैं

    वह वृद्ध पादरी के यहाँ जाती है और घंटी बजाती है

    चौकीदार बाहर आता है और कहता है :

    'तुम्हें क्या चाहिए

    फ़ादर अभी लंच कर रहे हैं

    और यह उनका लोगों से मिलने का समय नहीं है।'

    'मुझे अफ़सोस है। मैं बीमार हूँ। यह अत्यावश्यक है।'

    चौकीदार पहले उसकी गंदी बदबू करती देह को

    प्रश्नवाचक निगाहों से देखता है

    फिर कहता है :

    'तुम जितनी देर बाहर ठहर सको प्रतीक्षा करो

    मैं जाकर पूछता हूँ कि क्या फ़ादर तुमसे मिलना चाहेंगे।'

    दरवाज़ा बंद कर वह अंदर चला जाता है

    धूप से चौंधियाती हुई वह प्रतीक्षा करती है

    घंटे-भर बाद

    दाँतों के बीच फँसे अन्न-कण निकालते हुए

    पादरी बाहर आता है

    वह अपनी सिगरेट जलाता है, फिर पूछता है :

    'तुम्हें क्या उलझन है?'

    'मुझे अपने पाप स्वीकारना है'

    'लेकिन यह उनकी स्वीकृति का समय नहीं है।

    यह मेरी प्रार्थना का समय है।'

    'मैं मरने ही वाली हूँ।'

    'क्या तुम बीमार चल रही हो?'

    'हाँ। मुझे यौन-रोग है।'

    यह सुनते ही पादरी दो क़दम पीछे हट जाता है

    उसका चेहरा सिकुड़ जाता है

    फिर थोड़ा चकराया-सा वह दुबारा पूछता है :

    'क्या तुम रात को पेशा करने वाली औरत हो?'

    'हाँ। मैं एक वेश्या हूँ।'

    ‘सेंट पीटर की क़सम! तुम तो एक कैथोलिक हो।'

    ‘हाँ’

    'सेंट पीटर की क़सम!'

    तीन नीरव क्षण

    सूर्य जल रहा है

    तब पादरी फिर कहता है :

    ‘तुम्हें पाप के लिए बहकाया गया'

    ‘मुझे बहकाया नहीं गया। पर मैंने महापाप किया है।'

    ‘तुम्हें शैतान ने धोखा दिया?'

    ‘नहीं। मुझे ग़रीबी

    और रोज़गार मिल पाने की असफलता ने विवश कर दिया।’

    'सेंट पीटर की क़सम!'

    सेंट पीटर की क़सम! फ़ादर मुझे सुनिए

    मुझे नहीं जानना है कि मैंने पाप क्यों किया

    मैं महसूस करती हूँ कि मेरा सारा जीवन असफल रहा है

    मेरी आत्मा भ्रमित है।

    और मैं मरना चाहती हूँ

    लेकिन मैं बुरी तरह भयभीत हूँ

    मैं चाहती हूँ कि ईश्वर या कोई भी

    मेरा मित्र बने।’

    धर्मगुरु का चेहरा तमतमा उठता है

    वह मारिया ज़ैतून से कहता है

    'तुम शायद कोई ख़ूँख़ार बाघिन हो

    हो सकता है तुम पागल हो गई हो

    लेकिन तुम अभी मरने वाली नहीं हो

    तुम्हें धर्मगुरु की ज़रूरत नहीं है

    तुम्हें मनोचिकित्सक चाहिए।'

    (वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    जिसके चेहरे पर अहंकार और द्वेष झलक रहा है

    जल रही है जिसकी तलवार

    मेरी ओर अभियोग की मुद्रा में संकेत करता है

    मैं थक गई हूँ, शक्तिहीन,

    ज़ोर से रो नहीं सकती। बोल नहीं सकती।

    मेरा नाम मारिया ज़ैतून है

    एक भूखी-प्यासी वेश्या।)

    दुपहर तीन बजे

    सूरज अब भी जल रहा है

    हवा तक नहीं

    मारिया ज़ैतून पैर के अँगूठे के बल चल रही है

    जलती हुई सड़क पर

    सहसा सड़क पार करते हुए

    वह कुत्ते के गू में फिसल जाती है

    वह गिरती नहीं

    लेकिन उसके उरु-संधि के फोड़े से रक्त बहने लगता है

    और टपकता-टपकता उसके पाँव के नीचे पहुँच जाता है

    ब्याती हुई गाय की तरह

    उसकी टाँगें फैलती जा रही हैं।

    बाज़ार के पास वह रुकती है

    सर चकरा रहा है

    हाँफती हुई, वह भूखी है

    लोग उससे बच-बचकर चल रहे हैं

    वह एक रेस्तरां के पिछवाड़े जाती है

    जूठा फेंके जाने वाले कनस्तर से भोजन का उच्छिष्ट

    बटोरती है

    केले के पत्ते में उसे सावधानी से लपेटती है

    और शहर के बाहर चली जाती है।

    (वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    उसका चेहरा ठंडा और द्वेष से भरा हुआ है

    जल रही है जिसकी तलवार

    मेरी ओर अभियोग की मुद्रा में संकेत करता है

    ईश्वर मेरी पुकार सुनो

    मेरा नाम मारिया ज़ैतून है

    मैं एक दुर्बल वेश्या हूँ जो भय से काँप रही है।)

    शाम चार बजे

    वह एक घोंघे की भाँति घिसटती है

    भोजन के टुकड़ों का बंडल अब भी उसके हाथ में है

    जो अभी तक खाया नहीं गया

    उसका माथा तर है

    उसके बाल बिखरे हुए

    उसका चेहरा सूखे नींबू की तरह हरा और दुबला है

    अब पाँच बज चुके हैं

    उसने शहर छोड़ दिया है

    सड़क पर अब डामर नहीं है

    केवल धूल

    वह सूरज की ओर देखती है

    और धीरे से कहती है 'बदबू का पिंड'

    एक किलोमीटर और चलने के बाद वह सड़क छोड़ देती है।

    और चावल के खेतों की ओर मुड़ जाती है

    और क्यारियों पर चलने लगती है।

    (वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    जिसके चेहरे पर अहंमन्यता और विद्वेष झलक रहा है

    और जल रही है जिसकी तलवार

    मुझे दूसरी ओर मोड़ता है

    नफ़रत से भरा

    वह अपनी मर्दानी तलवार भोंक देता है मेरी उरु-संधि में

    प्रभु सुनो

    मेरा नाम मारिया ज़ैतून है

    एक पराजित वेश्या

    एक अपमानित वेश्या।)

    शाम छः बजे

    मारिया जैतून दरिया के किनारे पहुँचती है

    हवा बह रही है

    सूरज डूब रहा है

    दिन बदल रहा है झुटपुटे में

    थककर वह लेट जाती है नदी किनारे

    धोती है अपने हाथ-पाँव और चेहरा

    तब धीरे-धीरे खाती है

    एक क्षण को रुकती है

    अब और खाने की इच्छा नहीं रह गई है

    फिर वह नदी से पानी पीती है।

    (रखवाली करता देवदूत :

    क्या तुम्हें महसूस नहीं होता कि शाम हो गई है

    हवा पहाड़ से नीचे उतर रही है

    दिन लेटने जा रहा है?

    वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    दृढ़तापूर्वक उसे मोड़ देता है

    एक मूर्तिवत् वह खड़ा है

    उसकी तलवार जल रही है।)

    सात बजे! अब रात हो गई है

    कीड़े भनभनाने लगे हैं

    दरिया च‌ट्टानों से टकरा रहा है।

    दरिया के दोनों ओर के पेड़ और झाड़-झंखाड़ ख़ामोश हो गए हैं

    और चाँदनी में चमक रहे हैं।

    मारिया ज़ैतून अब भयभीत नहीं है

    वह अपने बचपन और युवावस्था को याद कर रही है

    अपनी माँ के साथ दरिया में नहाना

    पेड़ों पर चढ़ना

    अपने प्रेमी के साथ मछली मारना

    वह अब अकेली नहीं है

    और उसका भय समाप्त हो चुका है

    उसे महसूस होता है

    कि जैसे वह अपने किसी पुराने दोस्त के साथ है

    पर तभी उसमें अपने शेष जीवन की कहानी का भी

    बोध जागने लगता है।

    और चूँकि वह उसकी असफलता को जानती है

    वह उदास हो जाती है

    और उसके समक्ष अपने पाप स्वीकारने लगती है

    पूरे समय सिसकियाँ भरते हुए

    जो उसके दिल के लिए अशुभ है।

    (वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    जिनका चेहरा बिल्कुल ठंडा और द्वेष से भरा हुआ है

    मेरा उत्तर सुनने

    और मेरी आँखों में देखने से इंकार कर देता है

    उससे बात करना व्यर्थ है

    वह खड़ा है आक्रामक मुद्रा में

    और उसकी तलवार जल रही है।)

    समय

    चाँद

    पेड़

    सिफ़लिस

    फोड़े

    औरत

    दर्पण की तरह

    तेज़ रोशनी प्रतिबिंबित करता हुआ दरिया

    चमकती हुई लंबी घास।

    एक पुरुष दरिया के उस पार आता है

    वह पुकारता है 'क्या तुम मारिया ज़ैतून हो?'

    'हाँ' वह आश्चर्य करती हुई उत्तर देती है

    पुरुष दरिया पार करता है

    वह दृढ़ और हृष्ट-पुष्ट है और उसका चेहरा सुंदर है

    उसके बाल घुँघराले हैं

    आँखें बड़ी-बड़ी

    मारिया ज़ैतून के दिल की धड़कन

    बढ़ जाती है

    उसे लगता है

    जैसे उसने उस पुरुष को पहले भी देखा है

    यद्यपि यह नहीं मालूम कि कहाँ

    बिस्तर पर तो नहीं ही।

    यह कितना खेदजनक है!

    क्योंकि वह उसके-जैसे पुरुषों को पसंद करती है

    'तो यहाँ हुआ है हमारा मिलन' पुरुष कहता है

    क्षण-भर के लिए उसे आश्चर्य होता है

    पुरुष झुकता है और उसके अधर चूम लेता है

    नारियल-पानी की तरह है उसका ज़ायक़ा

    ऐसे चुंबन का अनुभव उसे पहले कभी नहीं हुआ

    अब वह उसकी चोली खोलता है।

    वह शक्तिहीन है पर साथ ही प्रसन्न भी

    वह समर्पण कर देती है

    अपनी आँखें बंद किए हुए उसे महसूस हो रहा है

    जैसे वह तैर रही हो किसी अपरिचित समुद्र में

    और जब समाप्त होता है यह

    वह विस्मय से कहती है

    'मैंने केवल स्वप्न में कल्पना की थी

    कि मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है

    मुझे कभी ऐसी आशा नहीं थी

    कि तुम्हारे जैसा सुंदर पुरुष

    मेरे जीवन में भी सकता है।'

    बड़े उल्लास के साथ वह उसे निहारता है

    फिर आदर और धैर्यपूर्वक मुस्कराता है

    'नाम क्या है तुम्हारा' मारिया ज़ैतून पूछती है

    'दूल्हा' वह उत्तर देता है

    'मुझे प्रमाण दो।

    तुम मज़ाक़ कर रहे हो'

    और यह कहने के साथ ही मारिया ज़ैतून

    उसके सारे शरीर को चूमने लगती है

    सहसा वह रुक जाती है

    अपने नायक के शरीर में उसने दाग़ देखे हैं

    उसके बाईं ओर

    उसके दोनों हाथों में

    उसके दोनों पैरों में

    मारिया ज़ैतून धीरे से कहती है :

    'मैं जानती हूँ तुम कौन हो'

    फिर पुरुष को ऊपर से नीचे तक देखती है

    वह स्वीकृतिसूचक सर हिलाता है 'हाँ वाक़ई!'

    (वह देवदूत जो स्वर्ग की रखवाली करता है

    जिसका चेहरा दुष्टता और द्वेष से भरा हुआ है

    और जल रही है जिसकी तलवार

    अब कुछ नहीं बिगाड़ सकता

    बेढंगे ढंग से वह ठिठुर जाता है

    उसमें अब मेरी और उँगली उठाने का साहस नहीं है

    मैं अब तनिक भी भयभीत नहीं हूँ

    अकेलापन और कष्ट समाप्त हो चुके हैं

    नाचती हुई मैं स्वर्ग के फाटक में

    प्रविष्ट होती हूँ और खाती हूँ जी-भरके सेब

    मेरा नाम है मारिया ज़ैतून

    वेश्या और दुल्हन एक साथ।)

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 288)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : डब्ल्यू. एस. रेण्ड्रा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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