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ई चान हमर अछि

ii chaan hamar achhi

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

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ज्योत्स्ना चन्द्रम्

ई चान हमर अछि

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

और अधिकज्योत्स्ना चन्द्रम्

    छोट-छोट सन दूटा कोठरी

    पुरनाएल गंध सँ सराबोर—

    कम पड़ि जाइत अछि जेना

    हमर भौतिकता के अँटएबामे

    मुदा,

    छोट अछि एकर परिधि,

    से स्वीकार मे भऽ जाइत अछि असुविधा

    कोठरी सभ सँ सटल, फूजल छल

    जेना,

    सभ किछु के अँगेजऽ लेल आतुर

    माँ केर खाली कोर

    आ,

    ऊपर तनाएल आकाशक अनन्त विस्तार

    जेना,

    पिताक दुलारक छाहरि!

    प्रतिदिन

    छत अपन छातीपर

    उतारैत अछि सतरंगी पाखी सभ

    छिड़ियाएल अन्न-कण कें बिछबा लेल

    ऐंठ थारी-बाटी मे मारबा लेल लोल

    कखनो, गमलाक फूलक ठाढ़िपर झुलैत

    कखनो, हमर अलसाएल आँखि मे तकैत

    कखनो, कोनो शुभ-समाद कहैत

    भाँति-भाँतिक संगीत बिलहैत

    पाखी सभ

    सदिखन भोर बनि रहैत अछि

    हमर मोन-प्राण में उड़ैत

    हमर बच्चा सभ

    पोथीमे नहि पढ़लक अछि एकरा

    देखलक अछि

    अपन कीनल छतपर

    ढिठगर भऽ कऽ फुदकैत

    क्रीड़ा-किलोल करैत

    कखनो पाँखि हौअबैत, कखनो

    लोल-मे-लोल फँसा गपिआइत

    देखू ने,

    अहूँ भरि आँखि, जे

    गमला सभ मे उपजाओल पौध मे

    समटि आएल अछि

    सम्पूर्ण-सृष्टिक हरीतिमा

    फूल सभ सँ ओमडाम

    खिलखिलाइत अछि सिमटी-पीटल जगह

    जेना,

    झहरैत सिङ्गरहार सन

    उतरैत रहैत अछि उजास

    एहि छोट सन सिकस्त परिसर मे

    आउ,

    अभिशप्त हम,

    देखबैत छी—

    फाँक भरि, वा खण्डित नहि,

    भरल-पुरल आकाश अछि हमर आँखि मे

    दूर-दूर धरि पसरल...

    रंग-बोरल आँचर सन अपरिमित...

    अद्भुत रंगक सामंजस्य...

    कोन चितेरा

    उठौने अछि अपन तूलिका!

    मोनक एहि राशि-राशिक विस्तार मे

    विलीन होबऽ लगैत अछि

    घरक सिकस्तता

    स्थगित भऽ जाइत अछि तत्काले

    नब घर तकबाक आकुलता...

    सिकस्त घरक फूजल छत-आँगन—

    जेना,

    तरहत्थीपर उतरल चान!

    चान हमर अछि

    एकरा हम गमाबऽ नहि चाहब

    एहि अस्त-व्यस्त-संत्रस्त संसार मे

    स्रोत :
    • पुस्तक : समग्र ज्योत्स्ना (पृष्ठ 68)
    • संपादक : विभूति आनन्द
    • रचनाकार : ज्योत्स्ना चन्द्रम्
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2017

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