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हम

hum

अनुवाद : रमेश कौशिक

ह्रिस्तो स्मिर्नेन्स्की

अन्य

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और अधिकह्रिस्तो स्मिर्नेन्स्की

    हम सब बच्चे हैं अपनी धरती माता के

    अनजाने पर उसकी दूध भरी छाती से

    दुनियावी राहों पर चैन हमको मिलता

    मरते अँधियारे में, प्यास उजाले की ले

    हम बेचारे बच्चे सब धरती माता के।

    भारी जूआ है कंधों पर, कोड़े पड़ते

    हम ग़ुलाम हैं, धन-दौलत के क़ानूनों के

    दुःख में मरने को ही हमको पाला-पोसा

    आँसू और रुधिर से सींचे हैं पथ अपने

    जीने को जन्मे, लेकिन शव हैं यहाँ बने।

    फिर भी तो हम भीषण लहरें हैं सागर की

    एक कारवाँ, द्यतिमान शिखर मंज़िल जिसकी

    पूरा ब्रह्माण्ड हमारी धड़कन के भीतर

    जीवन को लाए हैं हम अपने कंधों पर

    फिर भी कराहती लहरों के हम हैं सागर।

    हम ही भू पर पैदा करते सारा वैभव

    पर इसके उर में मरती, निज इच्छाएँ सब

    हम काँटों का मुकुट धरे निज शीश झुकाते

    बाट जोहते मृत्यु के काले डैनों की

    अपने भाग्य लिखा है संघर्ष और श्रम ही

    लेकिन आएगा न्याय-दिवस, तूफ़ान एक

    दिखलाई देता अंबर में धूमिल-धूमिल

    जिसके गर्जन में घृणा-प्रेम दोनों शामिल

    माँ धरती जाग गई है सोच-विचारों से

    अब छुटकारा देगी, कलंक औ' पापों से।

    उमड़ रहे रण-प्रांगण में दल दासों के

    प्रबल वेगमय लहरों से गरज रहे हैं वे

    अब इतना क्रोध भयानक शांत नहीं होगा

    उनकी चीख़ें बिजली-सी तीखी फटती हैं

    इस धरती माता के बेटे तो हम भी हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बल्गारियाई कविताएँ (पृष्ठ 49)
    • संपादक : रमेश कौशिक
    • रचनाकार : ह्रिस्तो स्मिर्नेन्स्की
    • प्रकाशन : पराग प्रकाशन
    • संस्करण : 1985

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