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हम किछु पूछब

hum kichhu puchhab

अशोक

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हम किछु पूछब

अशोक

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    आब तोरा की कहियह

    अनचोके आयल

    चुप्पीक मोल निलाम

    भेल हमर मोन

    तोरा आब खाली

    बुझैत रहत, गमैत रहत

    किछु कहैत नहि रहत।

    किछु कहबाक पूर्वक

    बूझब कहलाक

    बादक बूझबमे

    आयल फरक

    जखन कोनो मोनक

    बोली लगबऽ लगैत अछि

    तँ भाइ, सभ सम्बन्ध, अनुबन्ध

    नाँगट भऽ जाइए।

    एहि चीर-हरणमे आइ

    कृष्णक भूमिका

    दुःशासनक आगू

    ठेहुनियाँ दऽ दैत अछि।

    कृष्ण या तँ अयबामे

    बिलम्ब करैत छथि

    वा अपनाकेँ एहि झंझटसँ

    फराक कऽ लैत छथि।

    दुःशासन कृष्णक विवशता पर

    हँसैत, मुसकाइत, आब चीरोहरण

    करैत अछि कृष्णकेँ

    द्रौपदीक बदलामे सोरो करैए।

    नाँगट भेल हमर सम्बन्धक द्रौपदी

    आइ चिचिया नहि सकैए

    कानि नहि सकैए

    खाली टुकुर-टुकुर तकैत रहैए।

    भाइ, निलाम पर चढ़ल हमर

    मोनकेँ

    टुकुर-टुकुर तकैत रहब

    हमर तोहर दिनचर्या भऽ गेलए।

    आब तोरा की कहियह?

    संवेदनहीनतासँ संवादहीनता तककेँ

    रस्तामे एत्ते बेर—

    लोक जनमैए

    एत्तेबेर मरैए

    जे

    कखनहुँ कऽ अपन लाश अपनहि देखैए।

    अपन लाशकेँ अपनहि पीठपर

    उघैत हम, आइ अंतमे

    तोरासँ पूछैत छियह—

    हम बेताल कहिया हैब?

    हम विक्रमादित्य कहिया हैब?

    कहिया हम किछु पूछब

    तोँ किछु उत्तर नहि—

    दऽ सकबह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 9)
    • रचनाकार : अशोक
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2023

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