होना तो ये चाहिए था

hona to ye chahiye tha

राजीव कुमार तिवारी

राजीव कुमार तिवारी

होना तो ये चाहिए था

राजीव कुमार तिवारी

और अधिकराजीव कुमार तिवारी

    होना तो ये चाहिए था

    मन में बहती

    प्रेम करुणा और दया की नदी

    और जीवन एक उत्सव होता

    होना तो ये चाहिए था

    कि सब के साथ न्याय होता

    जो कोई अकेला पड़ता

    चार लोग साथ खड़े होते उसके

    मुश्किल हल हो जाती

    होना तो ये चाहिए था

    न्याय, सत्य और तथ्य के पीछे की

    मंशा भावना और आवश्यकता

    तक पहुँच पाता

    अपराधी के भी मनुष्य को

    ख़ारिज नहीं किया जाता

    होना तो ये चाहिए था

    कि वचन का मूल्य रहता

    आदमी स्वार्थ से ऊपर

    संबंध को रखता

    होना तो ये चाहिए था

    आँखों में मन का सच दिखता

    झूठा भी इतना तो सच्चा होता

    होना तो ये चाहिए था

    जीत से ज़्यादा महत्व

    सही से खेलने को दिया जाता

    पराजय विजय तक पहुँचने का

    एक माध्यम भर समझा जाता

    होना तो ये चाहिए था

    एक का आँसू

    दूसरे के सुख का जायका

    बढ़ाने के काम नहीं आता

    होना तो ये चाहिए था

    श्रम का स्वेद धरा पर टपकने से

    जीवन बगिया में हरियाली उगती

    होना तो ये चाहिए था

    आख़िरी पाँत में खड़े लोगों के

    दिन बहुरने की आशा उतनी ही प्रबल रहती

    जितनी एक धनाढ्य के कुबेर बनने की संभावना

    होना तो ये चाहिए था

    आदमी सिर्फ़ काम से जाना जाता

    हर काम का

    काम की तरह मूल्यांकन होता

    होना तो ये चाहिए था

    प्रतिरोध को हथियार उठाने को विवश नहीं होना पड़ता

    होना तो ये चाहिए था

    हर भाव विचार को अभिव्यक्ति मिलती

    कंठ में रूँधे स्वर तक को सुना जाता

    होना तो ये चाहिए था

    भूखे की रोटी

    बीमार के औषध

    असहाय की लाठी

    जुटाने की फ़िक्र में

    राजा के रातों की नींद उखड़ी रहती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजीव कुमार तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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