Font by Mehr Nastaliq Web

हर अदा है तेरी मतवाली

har ada hai teri matvali

विजयपाल सिंह बीदावत

अन्य

अन्य

विजयपाल सिंह बीदावत

हर अदा है तेरी मतवाली

विजयपाल सिंह बीदावत

और अधिकविजयपाल सिंह बीदावत

    आँचल को उँगली में लपेट,

    पैरों से जब खुरचे ज़मीन।

    तब रूप की भ्रांति मुझे क्यों,

    लगती हो सबको तुम हसीन॥

    लहराते बाल हिरनी-सी चाल,

    नित्य यौवन ज्यों चढ़ती धूप।

    प्रकृति ने कैसे की होगी,

    निर्मित तेरी प्रतिमा अनूप॥

    गहराए नयन मधु भरे बयन,

    सुन कोयल भी हो जाए भ्रमित

    जल और जाम की बात कहाँ,

    यह अधर तेरे तो हैं अमृत॥

    बरखा बहार पड़े जब फुहार

    गदराई देह जब नहा उठे।

    एलौरा-अजंता की मूर्त,

    हर किसी से तू कहलवा उठे॥

    लज्जा से कभी तेरे चंद्रमुखी,

    गालों पर जब सुर्खी छाती।

    अनुपम सौंदर्य देख तेरा,

    चँदा की चाँदनी शर्माती॥

    कलियों से कोमलता पाई,

    पुष्पों-सी सुंदरता पा ली।

    कितना मैं और बखान करूँ,

    हर अदा है तेरी मतवाली॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजयपाल सिंह बीदावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY