हाझोंगार्द कब्रिस्तान, नं. 2655
hajhongard kabristan, nan. 2655
ऑलॉदार लास्लोफ़्फ़ी
Aladar Laszloffy

हाझोंगार्द कब्रिस्तान, नं. 2655
hajhongard kabristan, nan. 2655
Aladar Laszloffy
ऑलॉदार लास्लोफ़्फ़ी
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(कोई)
कोई घूम रहा है क़ब्रों के बीच इधर से उधर, मानो
तलाशता, गुपचुप नज़र डालता, बाँचता, चीन्हता—
बूझता, सोचता ये-वो, और उसका तीसरा पहर
बीतता जाता है तीसरे पहर में, उसका बरस बीतता
जाता है बरस में, और उसका जीवन भी बीतता
जाता है महा जीवनहीनता के भीतर।
कोई घूम रहा है क़तारों के बीच, मानो तलाशता।
(याद)
ऐसी कोई क़ब्रगाह नहीं है जिसमें रिहाइश रही हो
हमेशा। पूछो, कहाँ गए वे सब जो रहते थे यहाँ
इस क़स्बे में पाँच सौ बरस पहले कहाँ गए?
क़ब्रिस्तान में। और वे जो सोते थे इस क़ब्रगाह
में पाँच सौ बरस पहले, कहाँ गए वे सब?
मौत के यहाँ। और कहाँ चले गए वे मौत के यहाँ से?
(ख़ामोशी)
दुनिया के किसी भी क़ब्रिस्तान से अलहदा है यह। काले मक़बरे
के ऊपर एक शाखा पसरा रही है अपना पंख, गोया
समाधि-लेखों पर आ बैठा हो यक उकाव। चेहरे नज़र आते हैं,
आकृतियाँ, भीतर, झाड़ियों के पार, एक सलमा-सितारों की,
सुनहरी काया खड़ी है अँधेरे में, पुस्तक या तेग
को थामे हुए, बिना हिले, बिना चले, आधी रात बीते भी
कोई नहीं घूमता, गोया यहाँ हर एक बस खड़ा है जगा हुआ,
किसी महत, दीर्घ, और हमारे तईं गोया निपट शोक-प्रेरित
अनुशासन में सिर को झुकाए हुए, केवल खड़ा
हुआ दुनिया के इतने इस त्रासद इतिहास पर,
खड़ा है इस दुनिया के अनुद्धार्य जीवन में।
- पुस्तक : दस आधुनिक हंगारी कवि (पृष्ठ 106)
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक गिरधर राठी, मारगित कोवैश
- प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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