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हैं शगुन से शब्द कुछ (माँ की स्मृति में)

hain shagun se shabd kuch (maan ki smriti men)

अलका सिन्हा

अलका सिन्हा

हैं शगुन से शब्द कुछ (माँ की स्मृति में)

अलका सिन्हा

और अधिकअलका सिन्हा

    हैं शगुन से शब्द कुछ, अंतिम निशानी रह गए हैं।

    शब्द जो धुँधला गए हैं आँख की ठहरी नमी में

    शब्द जो गहरा गए हैं याद की सूखी नदी में

    जो कि थर्राए गले में भाप बनकर रह गए हैं

    आँख से उमड़ी हुई जो बाढ़ के संग बह गए हैं

    थे कभी विश्वास से लबरेज, पर्वत के सरीखे

    आज सहमे-से हुए हैं, भुरभुरा कर ढह गए हैं।

    तुम जो बंजारन बनी, बहकी हवा-सी डोलती थीं

    छंद-दोहों से दमकती, लटपटाती बोलती थीं

    गुड़-मुरही के स्वाद से साधे हुए ताने तुम्हारे

    आज भी मोहक उजाला कर रहे मन में हमारे

    चौंधियाती रोशनी में मैं कहीं भरमा जाऊँ

    वो उलाहने आज भी असली हक़ीक़त कह गए हैं।

    हाँ, तुम्हारे शब्द सिरहाने में मेरी बैठ जाते हैं

    कभी देते हैं थपकी और कहानी भी सुनाते हैं

    कहानी वो कि जिसमें मैं सदा परियों की रानी थी

    ख़ुशी थी हर तरह की और रब की मेहरबानी थी

    चली आई थी सदियों से विरासत की कहानी में

    थे फ़रिश्तों की तरह कुछ लोग, जो दुख सह गए हैं।

    विदा के वक्त अंचरा खोल कर तुमने जो बांधे थे

    गिरह में ले गई थी मैं वो कुछ अक्षत के दाने थे

    थीं हल्दी की कुछ गाँठें और कुछ दूब की कलियाँ

    नए रिश्तों से जुड़ना था भुला बचपन की वो गलियाँ

    अखंडित आज भी विश्वास वह खोइंछा में रखा है

    भले हल्दी की गाँठें और वो अक्षत के दाने बह गए हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अलका सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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