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घर

ghar

एक

घर तुम इतने दूर क्यों हो?

क्यों मुश्किल है तुम तक आना?

भूखा थका प्यासा दमियल मैला घामड़ गंधैला

घुटने पे सूजन एड़ी में कंकड़ की चुभन

हाथ में झोली उठा पाता

मैं ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर टूटे हुए पीढ़े पर

बबूल के नीचे की घास पर

फसक जाता हूँ तब तुम्हें थोड़ी भी दया नहीं आती।

तुम्हारे पनसाल में मटकी है

तुम्हारे छीके में रोटी है

तुम्हारी कोठरी में खटिया है

तुम्हारे चबूतरे पर चौकी है

तुम्हारे टोड़े पर बारीक नज़र की चिड़िया है

क्या तुम्हें मैं कहीं नहीं दिखता?

दो

लेकिन घर, तुम तो ठीक हो ना?

दीवार के रंग की पपड़ियाँ उखड़ नहीं रही ना?

दरवाज़े किचुड़ते नहीं हैं ना?

खिड़की की चटकनियाँ सटकी नहीं ना?

छप्पर रिसता नहीं ना?

फ़र्श पर धूल चिपकी नहीं ना?

पानी का नल टपकता नहीं ना?

बिजली का बिल समय से चुकाया जाता है ना?

डाकिया चिट्ठी लाता है ना?

अख़बार आता है ना?

जान-पहचान के अनजान देर-सवेर घंटी बजाते हैं ना?

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक गुजराती कविताएँ (पृष्ठ 56)
  • संपादक : वर्षा दास
  • रचनाकार : दिलीप झवेरी
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2020

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