गठरी में धरे हैं कुछ शब्द
gathri mein dhare hain kuch shabd
गठरी में धरे हैं कुछ शब्द
बेसुध पड़ी घड़ियों की तरह।
वर्तमान समय से
टूट चुका है उनका संवाद
रीत चुकी है उनकी बैटरी
आजकल चलते नहीं हैं ये शब्द।
फिर भी, बंद पड़ी घड़ियों की तरह ही
इन्हें भी दे नहीं पाई मैं
किसी कबाड़ी को।
संभाल रखा है इन्हें मैंने
रूह की गठरी में!
इन शब्दों से जुड़ा है मेरा बचपन
इन शब्दों ने गढ़ा है मेरा जीवन
हर शब्द पर लगा सकती हूँ मैं
जान की बाज़ी।
मानती हूँ, हाँ में हाँ मिलाने का
अब नहीं रहा रिवाज
बच्चे भी रख सकते हैं अपने तर्क
अपनी बात।
काफ़ी मददगार हैं आजकल
ऐलेक्सा, कॉर्टाना और सिरी
तीर्थाटन की जगह ले रहे हैं वृद्धाश्रम।
यह भी सही है कि
आधुनिक टीचर या कोच सक्षम हैं काफ़ी
सफलता दिलाने में
फिर भी, मैंने संभाल रखे हैं
आज्ञाकारी, पितृभक्ति
और गुरु वंदन जैसे कुछ शब्द
ययाति और श्रवण कुमार जैसे कुछ नाम।
भले ही ज़रूरत नहीं अब गणित के पहाड़े
या कठिन शब्दों की स्पेलिंग रटने की
कंप्यूटर सहज ही सुलझा देता है
बड़े-बड़े समीकरण
और सुधार देता है वर्तनी की अशुद्धियाँ
फिर भी, उँगलियों से जोड़कर बताना कोई हल
उल्लसित करता है
गुड मॉर्निंग के प्रत्युत्तर में
‘ख़ुश रहो’ कहते हुए इतराती है ज़ुबान।
भले ही बेमानी हो गए हैं
कई शब्द और उनकी संकल्पनाएँ
बेसुध पड़ी घड़ियों की तरह
रीत चुकी है इनकी बैटरी
फिर भी, पीठ पर लादे इनकी गठरी
असंगत-सी चली जा रही हूँ मैं
आधुनिक सभ्यता की चिकनी सड़कों पर।
- रचनाकार : अलका सिन्हा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.