पच्चीस बरस बाद बालसखा के घर आने पर

pachchis baras baad balaskha ke ghar aane par

रमेशदत्त दुबे

रमेशदत्त दुबे

पच्चीस बरस बाद बालसखा के घर आने पर

रमेशदत्त दुबे

और अधिकरमेशदत्त दुबे

    नहीं रही वह सड़क

    और उसके दोनों किनारों पर

    नित्य-क्रिया-कर्म में व्यस्त

    पीले-पीले बच्चे

    चखचखाते मकान

    और साझा दीवारें

    पुरखों के छप्पर की तरह

    खपरैले छप्पर

    अनंत से लौटी पतंग को

    उड़ाते और गले से लगाए

    दरवाज़े पर पड़ा हुआ बाहर

    भीतर को अगोजे

    अलगनियों पर सूखते कपड़े

    टाट-पट्टियों के छेद से झाँकती

    अमृता शेरगिल की उदास लड़की

    आकाश-गंगा का साक्षी नक्षत्र

    नहीं रहे

    दहलान में अधलेटे पिता

    आवाज़ लगाते—

    रमेश, अशोक आए हैं,

    नहीं रही माँ

    उसका गोबर लिपा फ़र्श

    और धुआँ-धुआँ होता एहसास

    नहीं रही

    मेरी आँखों में ललक

    पोर-पोर से फूट उठने का

    आदिम आवेग

    कुछ भी नहीं बचे में

    आए तुम

    जैसे ऊसर में हरा

    निर्झर में प्यास

    जैसे जेब से गिरे सिक्के में

    उपेक्षित कोना-अँतरा।

    आए तुम

    जैसे बचपन का छूटा वसंत

    आए तुम

    कुछ को बचाए

    जैसे कविता

    थोड़ी-सी जगह

    जैसे प्रेम

    गुमशुदा चीज़ें

    जैसे स्मृति।

    जैसे वर्षों पूर्व मरी माँ

    आती है सपने में

    कहता हूँ मैं—

    तुम तो मर गई रहिन माँ

    फिर कैसे गईं

    कहती है माँ

    जब गोद के बच्चे को छोड़कर

    मरती है माँ

    चिता की लकड़ियों को अर्राकर

    मरघट से भी लौट आती है—

    सशरीर

    आए तुम

    नहीं के घर में

    जैसे घर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हड्डियों से भी दूध उतर आता है (पृष्ठ 25)
    • रचनाकार : रमेशदत्त दुबे
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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