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मनुष्य की आवाज़

manushya ki avaz

अनुवाद : सरिता शर्मा

व्लादिमीर होलन

अन्य

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व्लादिमीर होलन

मनुष्य की आवाज़

व्लादिमीर होलन

और अधिकव्लादिमीर होलन

    पत्थर और सितारे, हम पर अपना संगीत नहीं थोपते हैं

    फूल, ख़ामोश हैं चीज़ें अपने पास कुछ रहस्य रखती हैं

    हमारी वजह से, जानवर इनकार कर देते हैं

    अपनी मासूमियत और कपट के मेल से,

    हवा के पास हमेशा उसकी सहज भंगिमाओं की शुद्धता है

    और, कौन-सा गाना है जिसे केवल मूक पक्षी जानते हैं

    जिसकी तरफ़ आपने फेंक दिया बिना मुड़ा पुलिंदा क्रिसमस की पूर्व संध्या पर

    ज़िंदा रहना उनके लिए काफ़ी है और वह शब्दों से परे है। लेकिन हम,

    हम केवल अँधेरे में डरते हैं

    भरपूर प्रकाश में भी

    हम अपने पड़ोसी को नहीं देखते हैं

    और यंत्र-मंत्र के लिए बेताब हो कर

    भय से चिल्लाते हैं—“तुम हो क्या? आवाज़ दो!”

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कविताएँ (पृष्ठ 66)
    • रचनाकार : व्लादिमीर होलन
    • प्रकाशन : इंडिया टेलिंग
    • संस्करण : 2020

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