फ़ैमिली मैन

faimili main

जावेद आलम ख़ान

जावेद आलम ख़ान

फ़ैमिली मैन

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    मैं उस धूमकेतु का वंशज हूँ

    जो ख़ुद के पैरों में उजालों को बाँधकर

    भीड़ की रहनुमाई की तख़्ती को थामकर

    अपनी आँखों के लिए रोशनी के दो क़तरे जुटा नहीं पाता

    और जिसका गुरु भी आंधला की व्यंग्योक्ति कान में धरकर

    अनजाने अँधेरे में गिरता जाता

    बच्चे मुझे सुपरमैन समझते हैं

    लेकिन असल में मैं एक संशयग्रस्त फ़ैमिली मैन हूँ

    मैं ही वह दलित हूँ

    जो हज़ार सालों से दूध से हाथ जलाते-जलाते

    अब छाछ से भी डरने लगा है

    मैं ही वह ब्राह्मण नौजवान हूँ

    जो तमाम रोशनख़याली के बावजूद

    ब्राह्मणवाद के ताने झेलने को मजबूर है

    शोषक का ठीकरा ढोता बेगारी मज़दूर है

    मेरे अंदर एक धार्मिक अल्पसंख्यक का ख़ौफ़ है

    जो दंगों की अफ़वाह उड़ते ही

    घर के दरवाज़े पर मोटे ताले जड़ देता है

    घर की महिलाओं को थमाता है ज़हर की शीशी

    सहमी हुई आँखों और कँपकँपाते हाथों से

    सब्ज़ी काटने वाली छुरी को थामकर

    दरवाज़े पर कान लगाए रहता है

    और हर आहट के साथ अपने अंदर मरता जाता है

    बहन-बेटियों वाले परिवार का अकेला आदमी हूँ

    जो स्त्रियों को पढ़ाना तो चाहता है

    मगर अकेले स्कूल भेजने से डरता है

    ख़ानदानी रईसी खोया ज़मीदारों का वंशज हूँ

    जो चौपाल पर बैठने से बचता है

    और दरवाज़े पर फ़क़ीर की सदा आते ही सहम जाता है

    उस मध्यवर्गीय परिवार का मुखिया हूँ

    जो अश्लील विज्ञापन के डर से

    टीवी का रिमोट हाथ में पकड़े रहता है

    जो पूरे परिवार को बंद मुट्ठी रखना चाहता है

    मगर किसी पर भरोसा नहीं कर पाता

    जो सब कुछ बच्चों के नाम लिखना तो चाहता है

    मगर बुढ़ापे की फ़िक्र में रुका रहता है

    ज़िंदगी के क़हक़हों को अनसुना करके

    आसन्न मृत्यु की प्रतीक्षा में कुम्हलाया रहता है

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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