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एक वृक्ष की स्मृति

ek vriksh ki smriti

प्रशांत रमण रवि

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प्रशांत रमण रवि

एक वृक्ष की स्मृति

प्रशांत रमण रवि

और अधिकप्रशांत रमण रवि

    वह पीपल—

    जो कभी गाँव के मध्य

    जैसे कोई पुराना ऋषि बैठा रहता था

    छाँव फैलाकर,

    अब झुक गया है चुपचाप,

    जैसे स्मृति की कोई थकी हुई पीठ।

    उसकी शाखाएँ,

    टूटी उँगलियों-सी—

    जो समय के थपेड़ों में

    किसी भूली दास्तान को

    थामने की चेष्टा करती हैं।

    कभी,

    उसकी छाँव में बसता था पूरा गाँव—

    बच्चों की किलकारियाँ,

    जवानों के सपने,बूढ़ों की कहानियाँ,

    और पक्षियों का कोलाहल।

    अब उसके चारों ओर

    लोहे के टावर उग आए हैं—

    ज़मीन से जुड़े,

    आकाश से प्रेम करने वाले—

    बस काँपते हुए सिग्नलों के

    मौन यंत्र।

    फिर भी,

    वह पीपल

    अपनी विक्षिप्त डालियों से

    हवा में एक प्रश्न उछालता है—

    “क्या याद है तुम्हें वह दिन

    जब तुम मेरी छाँव में खेला करते थे?”

    वह चुप खड़ा है,

    धूप के एकांत में—

    और सहता है

    गाँव के चल बसने का दुःख,

    बचपन की नमी का लोप,

    और उन संबंधों की क्षीण होती परछाइयाँ

    जो अब

    मोबाइल की स्क्रीन में

    पलटते हैं कुछ सेकंडों तक।

    अब उसकी आँखों में

    कोई हरियाली नहीं—

    बस इतिहास टपकता है,

    जैसे जड़ से उठता कोई विलाप

    जो कहता है—

    मुझसे मेरा आकाश छीन लिया गया है।

    वह पीपल

    अब एक वृक्ष नहीं,

    एक शोक-स्थल है—

    हमारी विस्मृति का,

    जहाँ धुएँ की शक्ल में

    यादें

    धीरे-धीरे

    स्वर्ग की सीढ़ियाँ चढ़ती हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रशांत रमण रवि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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