टूटकर गिर जाने से पहले, साथ छूट से जाने पहले
मैं ज़रा कोशिश तो कर लूँ,
कल पिंजड़े से आसमाँ को तकते हुए,
ख़ुद से नज़र भी तो मिलानी है।
बेड़ियाँ हँसेंगी मुझ पर
जब
मैं रात से अँधेरा चुरा कर
पिंजड़ा सजा दूँगा, हारे हुए लोगों की परछाई से
परछाई का सबसे काला हिस्सा, जहाँ रोशनी भी दम तोड़ देती है
उस कैद की आज़ादी में, जब मैं गाने लगूँगा,
समझ जाना,
एक संसार बनाया है मैंने,
जहाँ पंख टूटी तितलियों और मुरझाए फूलों को पनाह मिलेगी
एक संसार बनाया है मैंने
जहाँ भूले हुए ख़्वाब को भी पनाह मिलेगी,
जहाँ पराजय में विजय; देखी जाती है
जहाँ दो लोग अधूरे होते हुए भी; जी सकते हैं
वो लड़की को घर लौट रही थी तेज़ क़दमों से अपने घर लेकिन पहुँची अनगिनत ज़ख़्मों के संग
एक मैच हारा हुआ खिलाड़ी
एक असफल लेखक,
प्रेम में विफल प्रेमिका
वो शिकस्त खाई तलवार
तलवार पकड़े वो योद्धा,
वो बच्चा जिसकी कल्पनाएँ, कुछ सवालों से परे है
यही हारा हुआ संसार बनाया है मैंने
जैसे उस गीत की तरह, जिसकी धुन याद है, लेकिन बोल भूल गए हों,
उस ख़्वाब की तरह, जिसको बंद आखें से तो
देखा था
सूरज को तरफ़ उड़ान भी भरी, लेकिन पंख पिघल गए
खुली आँखों से ख़्वाब अधूरा ही रह गया,
एक संसार बनाया है मैंने, जहाँ हार जाने की सज़ा नहीं दी जाती।
- रचनाकार : ऋद्धि गिरि
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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