एक बाघ ध्यान में आता है। संध्या ने
इस विशाल और व्यस्त पुस्तकालय को एक बार
उजागर कर किताबों को वापस अँधेरे में
सज़ा कर रख दिया है;
वह वहाँ घूम रहा है अज्ञात नदी नालों के किनारे की गीली मिट्टी पर
अपने पंजों के निशान छोड़ता हुआ
निष्कपट, निष्ठुर, ख़ून में सना, फुर्तीला,—
उसका जंगल है और उसका दिन
किस जगह है वह? उसे उनके नाम नहीं मालूम।
(उसकी दुनिया में नाम नहीं होते, न अतीत
न भविष्य, केवल एक चटक वर्तमान होता है)
लंबे बियाबानों को पार करता हुआ वह
अपना रास्ता बनाता है, सूँघता है
गंधों की उलझी हुई भूलभुलैया में एक जानी पहचानी गंध
सुबह की ताज़ी हवा में निर्द्वंद्व चरते हिरन की गंध
उसे पागल बना देती है, बाँसों के झुरमुट की
चितकबरी छाया में लुकीछिपी एक चिकनी बलिष्ट देह
पट्टीदार खाल के भीतर फड़कती है।
सारी दुनिया के खाई खंदक, सागर महासागर भी—
हम दूर नहीं रख पाते : यहाँ से उत्तरी अमेरिका से,
में एक घर में बैठे-बैठे अपने सपनों में
उस बाघ के टोह में घूम रहा है, गंगा की कछारों पर
सोचता हूँ अब, मेरे प्राणों में समाती हुई यह शाम
और वह, मेरी कविता वाला बाघ—वह केवल एक छाया है,
प्रतीकों का बना हुआ, किताबों से चुनकर यूँ ही उठा लिए गए
वर्णनों का बाघ, लक्षणों का संग्रह—उसमें जान नहीं।
कहाँ तो वह भावी प्रबल बाघ बंगाल या सुमात्रा में पाई जाने वाली
किसी घातक मणि-सा जिसके साथ
ग्रहों का शुभाशुभ ऐसा योग जुड़ा होता है कि हमेशा
कुछ न कुछ घटते रहना ज़रूरी—प्यार, ऐश्वर्य, मृत्यु...
कहाँ यह मेरा प्रतीकात्मक बाघ
जिसके विरुद्ध रखता हूँ उस असली बाघ को
जिसका ख़ून खौलता है जब वह जंगली भैसों के झुंड पर टूट पड़ता है
और उन्हें चीर डालता है—वह जिसकी छाया घास पर पड़ रही है आज
तीन अगस्त 1959 के दिन।
लेकिन उसे नाम देते ही, उसके संसार को सीमित करते ही
वह झूठा पड़ जाता है ज़िंदा जानवर नहीं रहता,
धरती के अज्ञात जंगलों में लापरवाह घूमने वाला बाघ नहीं रहता।
क्यों न एक तीसरे बाघ को खोजा जाए। लेकिन वह भी
दूसरों की ही तरह मेरे सपनों की ही एक रचना होगा,
शब्दों का ढाँचा—जीता-जागता बाघ नहीं
जो बिना किसी कथा-कहानी की परवाह किए
पृथ्वी पर स्वच्छंद टहलता हो।
जानता हूँ, ख़ूब अच्छी तरह जानता हूँ, फिर भी
अपने को रोक नहीं पाता, बार-बार
निकल पड़ता हूँ उसी बेसिरपैर की पुरानी खोज में
और घंटों भटकता रहता हूँ
उस दूसरे वाले बाघ के चक्कर में जो कविता वाला बाघ न हो।
- पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 48)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : होर्खे लुइस बोर्खेस
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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