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डुमराँव नज़र आएगा मुग़ल सराय से

“Dumranv nazar ayega mughal saray se”

चंद्रेश्वर

अन्य

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चंद्रेश्वर

डुमराँव नज़र आएगा मुग़ल सराय से

चंद्रेश्वर

और अधिकचंद्रेश्वर

    किशोरावस्था में सुना था

    पहली बार नाम

    मुग़ल सराय का

    एक मुशायरे में

    जब भोजपुरी-हिंदी के हास्य रस के

    कवि बिसनाथ प्रसाद 'शैदा' ने सुनाई थी

    अपनी एक कविता कि

    शैदा नज़र की रौशनी

    बढ़ती है चाय से

    डुमराँव नज़र आएगा

    मुगलसराय से

    अब जब सरकार

    बदलने जा रही है

    इस नाम को

    तो एक इतिहास-संस्कृति का

    बहुरंगी अध्याय

    दफ़न होने जा रहा है

    यह एक कवि के द्वारा बरता गया

    चाय और मुग़ल सराय के

    तुक का मामला ही नहीं

    यह महज़ एक शब्द की

    सुनियोजित हत्या भर नहीं

    एक संस्कृति की हत्या भी है

    यह स्मृतियों पर गिराना है

    कोलतार पिघला हुआ

    अब हत्यारे सिर्फ़

    किसी निर्दोष इंसान की

    हत्या ही नहीं कराएँगे

    भीड़ से

    उन्माद पैदाकर

    वे शब्दों को भी मारकर

    दफ़नाने के पहले

    उन पर कानूनी चादर का

    ओढ़ा देंगे

    सफ़ेद कफ़न

    यह एक ऐसी शताब्दी है

    भीषण रक्तपात की

    जहाँ इंसान से भी ज़्यादा

    लहूलुहान हो रहे

    शब्द

    मारी जा रहीं भाषाएँ

    जिसे हासिल करने में

    गुज़र जाती हैं

    शताब्दियाँ!

    स्रोत :
    • रचनाकार : चंद्रेश्वर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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