काला चित्र

kala chitr

तारा स्मैलपुरी

तारा स्मैलपुरी

काला चित्र

तारा स्मैलपुरी

और अधिकतारा स्मैलपुरी

    जंग

    नाम मेरा है—

    सर्वनाश युद्ध

    जटा-जूट सम अग्नि तांडव

    रोष मेरा प्रचंड ज्वाला

    मेरी अँगुलियों के ताल पर

    यह मानवता

    गगन

    सृष्टि

    सब कुछ नाचे

    सब कुछ नाचे

    हा-हा, हा-हा

    हा-हा, हा-हा

    किसका साहस

    भिड़े जो मुझसे

    मैं तो रक्त की नदी बहाकर

    मिट्टी

    पत्थर

    रक्त से रंजित कर सकता हूँ

    लाशों के मैं ढेर सजाकर

    झुलसा साँसों को सकता हूँ

    टपक-टपककर आँसू झरते

    मुझे पहचाना

    मुझे जाना

    मैं तेरी काली परछाईं

    तेरी काली करतूतों का

    चित्र हूँ काला—

    नवयुग का हूँ सृजनहार मैं

    मानवता की अमर ज्योति मैं,

    अमर स्त्रोत मैं,

    मैं तेरे इस ज्वालामुखी-सा

    चिता-भस्म के हवनकुंड में

    नव-निर्माण के मोती चुनकर

    हार गूँथता,

    फिर धरती की गोद सजाता

    किंतु अब इस धरती को

    धधक रही

    इस अग्निकुंड की ज्वालाओं में

    कभी नहीं मैं जलने दूँगा

    मानवता की अरमानों की

    धू-धू चिता जलने दूँगा

    जीव-ज्योति बुझने दूँगा

    नाम मेरा है—

    मोहिणी मूरत

    सृष्टि का इतिहास कहलाता

    भस्मासुर

    ख़बरदार जो आगे आए

    मृत्यु लेकर

    मुझे पहचाने?

    मुझे तू जाने

    समस्त सृष्टि को

    अग्निकुंड में

    धक्का देकर

    डुबा सकता हूँ

    नाम मेरा है,

    सर्वनाश युद्ध जटाजूट सम

    अग्नि तांडव—

    मेरे एक इशारे पर ही

    महाप्रलय का तांडव रचकर

    प्रलयंकर तूफ़ान गरजते

    कड़-कड़,करता गगन कड़कता

    धड़-धड़ करते गोले फटते

    मृत्यु का कोलाहल होता

    काल घहरता

    चलते झंझा

    चटख-चटखकर

    डाल चटखते

    पेड़ उखड़ते

    महल चौबारे थर-थर काँपें

    डगमग-डगमग धरती डोले

    लपट-लपटकर

    लपटें नाचें

    चहुँ ओर ही जले चिताएँ

    रंग-रंगीनी धरती हो गई

    बिरला,

    बिरला,

    बियावान में दीपक जलता

    नाम मेरा है

    सर्वनाश युद्ध

    जटाजूट सम अग्नि तांडव

    इतिहास

    अहंकारी!

    अभिमानी!

    ठहरो पलभर,

    रोको वाहन

    पागलपन की अग्नि में ही

    चूर-चूर हो गर्जन करते

    ख़बरदार जो आगे आए

    मुझे पहचाना?

    मुझे जाना?

    मेरी-तेरी काली परछाई

    तेरी काली करतूतों का,

    चित्र हूँ काला

    नाम मेरा इतिहास कहलाता

    मेरी वाणी

    वज्र वाणी

    अमृत जल की,

    बहती धारा—

    बीच में जिसके

    चीत्कार हैं मासूमों के

    रोदन, क्रंदन

    चीख़ें, आहें

    नयनों से झरते हैं मोती,

    अश्रुजल की बाढ़ गई

    लहरें उठतीं

    आहों और हुंकारों से ही

    पत्थर भी तो रोदन करते

    करते टप-टप।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 109)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : तारा स्मैलपुरी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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