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देस की नइया

des ki naiya

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

और अधिकश्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

    (बरवै)

    रामदेस की नइया, कस मझधार।

    डारउ तनिक निगहिया, लागइ पार॥1॥

    कहाँ छीर मा स्वावउ, बरखुरदार।

    देस-कोष का लूटइँ, चौकिदार॥2॥

    नदिया लावइ पानी, पी खुद जाइ।

    ख्यात परे सब सूखइँ, तरु कुम्हिलाइ॥3॥

    बादर गइजइँ तरजइँ, बरसइँ नाँहि।

    पपिहा मरइ पियासा, ताल सुखाँहि॥4॥

    दीनबन्धु कहवावउ, दयानिधान।

    दीन मरइ बिन रोजी, ख्वावइ प्रान॥5॥

    दीनबन्धु तुम उल्टउ, अधम विधान।

    पिक का पूछइ कोइन, काग महान॥6॥

    किहेउ विधाता कस यहु, तोरु-मरोरु।

    भैंसि वहे की जेहि की, लाठिम जोरु॥7॥

    अद्रा, पुष्य, पुनरबस, बरसइँ आगि।

    सोइ रहेउ तुम जगपति, जातिउ जागि॥8॥

    हार भये अब सँपवा, गरु डसि खाँइ।

    का प्रतीति के जरिगे, दोनउँ पाँइ॥9॥

    उगिलइ आगि चँरदमा, सुर्ज अँध्यार।

    मछरी बैठि बिरउना, पिक मझधार॥10॥

    कागा पूजन देखिक, पिकी उदास।

    चहुँ दिसि दधि के रुपम, बिकै कपास॥11॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 25)
    • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
    • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
    • संस्करण : 1991

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