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देह तो लकड़ी है

deh to lakDi hai

राहुल राजेश

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राहुल राजेश

देह तो लकड़ी है

राहुल राजेश

और अधिकराहुल राजेश

    जैसे बात के अंदर बात है

    वैसे ही जात के अंदर जात है!

    क्या ऊँची, क्या नीची

    हर जात के भीतर हैं

    कई-कई दीवारें खिंची!

    बड़ों के भीतर भी कोई छोटा है

    छोटों के भीतर भी कोई बड़ा है!

    हर कोई एक-दूसरे की राह रोके खड़ा है

    तू नहीं, मैं बड़ा, इसी बात पर हर कोई अड़ा है!

    भाँति-भाँति के धरम हैं देश में

    भाँति-भाँति के वेश

    कोई जोगी है, कोई नागा है

    कोई सूफ़ी है, कोई दरवेश!

    जात-धरम की जोड़ी बड़ी तगड़ी है

    हमने भी क्या ख़ूब पकड़ी है!

    जात-धरम के चक्कर में

    मूल धरम-करम की किसे पड़ी है?

    देह तो लकड़ी है

    पर हमारी बुद्धि भी बज्जर हुई पड़ी है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : राहुल राजेश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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