अँधेरे के विरुद्ध

andhere ke wiruddh

अतुल कनक

अतुल कनक

अँधेरे के विरुद्ध

अतुल कनक

और अधिकअतुल कनक

    कितनी ही गहरी हो अमावस

    थरथरा जाती है आख़िर

    दीवार पर प्रकाशित होते ही एक दीपक

    रचने वाले रच लें अनगिनत प्रपंच,

    मारीच की माया कभी नहीं रच सकेगी

    अंतिम जीत की छवियाँ

    सत् का साथी आएगा जब अपनी पर

    छिन्न-भिन्न कर देगा असुरों की राजधानी

    और सच का सारथी तो आरूढ़ होगा ही

    पुष्पक विमान पर।

    धीरज धर!

    कालजयी नहीं हो सकता कोई अँधेरा,

    मन के दीए खँगाल

    तो बिखर जाएँगे चारों ओर उजास के कण,

    और ये कण बीनते समय

    भूल मत जाना न्यौतना परस्या पाहुण।

    याद रखना

    तुम्हारे द्वार पर दीवाली उस समय ही मुस्कुराएगी

    जिस समय बाँटना सीख जाएगा तू सही में बाँटना

    अपने हिस्से का उजाला अपनों की ख़ातिर

    और परायों के लिए भी उन्मुक्त।

    परस्या पाहुण न्यौतना : दीवाली की रात दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में

    सुहागिनें हर घर में दीप सजा हर द्वार पर एक-एक दीप रखकर आती हैं।

    इसी रिवाज को परस्या पाहुण न्यौतना कहा जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक भारतीय कविता संचयन राजस्थानी (1950-2010) (पृष्ठ 134)
    • रचनाकार : अतुल कनक
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

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