Font by Mehr Nastaliq Web

नदिया की धारा

nadiya ki dhara

राजेश राजभर

राजेश राजभर

नदिया की धारा

राजेश राजभर

और अधिकराजेश राजभर

    जल ही जल निर्मल पावन

    अखँड अलौकिक मन भावन

    हे सरिता, तटिनी, तरंगिणी,

    जीवनदायिनी निर्झरिणी...!

    उदगम अनंत अद्भुत

    संकरी बिखरी धाराएँ...

    सम्मिलित हो प्रबल—

    तय करती दिशाएँ,

    सरल सतत-प्रवाह मयी—

    सुंदर—कल-कल, छल-छल,

    जल ही जल निर्मल पावन!

    उमंग भर उठे तरंग

    निहारता-वितान हो उदार!

    उतारती है! आरती निशीथ—

    बयार संग झूमता कछार,

    गति चंचल निश्च्छल अविरल

    मधुर मनोरम शीतल दर्पण,

    जल ही जल निर्मल पावन!

    उतर उफनती गर्जती

    सींचती भू-धरा निर्जीव,

    हरियाली करवट लेती—

    रंग हज़ारों भरें सजीव,

    विहंग विचरण अति सुंदर

    पाट सपाट प्रकट आँचल,

    जल ही जल निर्मल पावन!

    अगम अथाह दृष्टिगत पुलक

    हर्ष उल्हाष आभाष नित,

    निष्ठा निहित निरंतर बेला,

    धर्म-कर्म स्नान चित,

    निज रूप पापनाशिनि—

    हे कूलंकषा!

    है कोटि-कोटि तुझे नमन

    जल ही जल निर्मल पावन!

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY