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डरा हुआ पिता

Dara hua pita

जनार्दन

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डरा हुआ पिता

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    एक बेटी का पिता हूँ

    समाज के सबके पिछले पायदान का हूँ

    आप समझ ही गए होंगे

    जी हाँ, आदिवासी हूँ।

    बहुत चिंतित और असमंज में हूँ

    मशवरा दें, राह बताएँ

    पुरुष हूँ

    जीवन का एक हिस्सा पुरुष बनकर जिया हूँ

    चाहता हूँ बेटी को

    मुझ जैसा पुरुष मिले

    क्या करूँ साथी, ख़ुद के साए

    से डरा रहने लगा हूँ...

    आदिवासी होने के नाते

    शोषित होता रहा हूँ सदैव

    चाहता हूँ

    अपने उम्र के किसी भी हिस्से में

    बेटी शोषित हो

    ऊँची जाति के पुरुष ही नहीं, स्त्रियाँ भी

    अपमानित की हैं अनगिनत बार

    पिता होने के नाते ढाल बन जाना चाहता हूँ

    बेटी को सारे अपमान से बचा लेना चाहता हूँ

    नास्तिक होने के नाते

    नोक पर रहता आया हूँ समाज, शासन और राष्ट्र के

    मेरी तरह अगर बेटी भी

    नास्तिक निकली तो...

    भय से कांप जाता हूँ

    क्या करूँ साथी

    डरा हुआ पिता जो ठहरा।

    एक सवाल बार-बार जेहन में आता है

    क्या ऊँचे तबके के रसूखदार पिता भी

    अपनी बेटियों के वास्ते

    डरे सहमे होते होंगे मेरी तरह?

    पुलिंग, स्त्रीलिंग

    समाज, शासन और राष्ट्र से घिरा

    पिता डरा हुआ है

    बेटी बोलने लगी है

    सवाल करने लगी है

    डरे हुए पिता को

    आप ही कोई राह सुझाएँ

    बड़ी कृपा होगी...

    स्रोत :
    • रचनाकार : जनार्दन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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