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दालि मा करिया है

dali ma kariya hai

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

दालि मा करिया है

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    अनहोनी होवइ दिन’हूँ मा लगइ कुबेरिया है

    तउ भइया यहु जानि लेहेउ कुछु दालि मा करिया है

    मारे जीपन का ताँता जब गाँउ मा आइ गवा

    गाँउ स्वर्ग मिन्टन मा हुइगा उनहुक भाइ गवा

    सड़कर चमचमाइँ सगरी महकति नरिया है

    तउ भइया यहु जानि लेहेउ कुछु दालि मा करिया है

    बहुत दिनन तक मउज करिनि सोचिनि कुछु ना बिगरी

    नेता जी की मेहरी—तउ घर ते’उ ना निकरी

    लेकिन चौराहेन पर देखेउ छपी बहुरिया है

    तउ भइया यहु जानि लेहेउ कुछु दालि मा करिया है

    पाँच साल रगरिनि कुछु का रगराइनि भाड़े से

    कुछु भूँखेन मरिगे घरु लुटिगा जिन्दा गाड़ेगे

    अब एकदम जनहित वाली गर खुली पेटरिया है

    तउ भइया यहु जानि लेहेउ कुछु दालि मा करिया है

    घरमा सारेन के संघी ससुरारि ते आइ गये

    खातिरदारी खूब भई परि के औंधाइ गये

    मुल दिनहूँ, मइहाँ गर देखेउ बन्द कोठरिया है

    तउ भइया यहु जानि लेहेउ कुछु दालि मा करिया है

    उपदेसी हइँ नीक काम की राह बतावति हैं

    काम-क्रोध-मद मोह तजउ यहु भजनउ गावति हैं

    तुम देखेउ जो महराजइ की मइलि चदरिया है

    तउ भइया यहु जानि लेहेउ कुछु दालि मा करिया है

    अगर परोसी सजि धजि के खूबइ भभियावति है

    लरिका कनियाँ मा लइके कुछु चीज देवावति है

    रहइ करकसा मुल घिउ हुइ गइ अगर मेंहेरिया है

    तउ भइया यहु जानि लेहेउ कुछु दालि मा करिया है

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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