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दैता धुन

daita dhun

हरेकृष्ण झा

अन्य

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हरेकृष्ण झा

दैता धुन

हरेकृष्ण झा

और अधिकहरेकृष्ण झा

    ककरा पुछबैक झूठसाँचक मादे,

    ककरा पुछबैक

    कोन गताल

    मे गेल फूलपात।

    कतहु

    आबंच नहि।

    एकटा दैता धुन

    असवार अछि सभ ठाम,

    खाँखीक बर्छी सँ

    गाँथल अछि

    हमरा लोकनिक मोनप्रान।

    ककरा पुछबैक

    लोक एना निच्छोह

    किएक भागल

    जा रहल अछि

    निसाफ बेनिसाफक

    ओहि पार,

    लोक एना उमतल

    किएक जा रहल अछि

    भुतहा निरंत दिस

    नीक अधलाहक

    ओहि पार।

    कोना क' पुछबैक सरिपहुँ,

    मरचरक निसाभाग राति

    किएक एना

    बास करैत अछि

    हमरा लोकनिक

    भीतरी खोह मे,

    राकसक भुकभुकी

    किएक एना

    भेल रहैत अछि

    सदिखन उत्फाल।

    अबचंक होइत

    पुक्किये टा पाड़त लोक

    जँ कहबैक कदाचित

    निखत्तर गेल नेहछोह,

    दरेगो भेल

    ओधबाध,

    अपनहि आत्मा

    एहि जहान मे

    भ' गेल

    सभ सँ बेसी

    अनभुआर!

    के कहत

    कुकुरालूझक

    एहि आलजाल मे

    कतय छुटि गेल

    मोख जीवनकः

    बिला गेल कतय

    कनकचम्पाक निकुंज

    हमरा लोकनिक

    भीतर सँ।

    ककरा सँ पुछबैक

    एहि अधक्की

    समय मे

    कबीरक धपधप

    हाँसक मादे,

    ककरा सँ पुछबैक

    परबाक कुशलछेम

    एहि खाधुर

    समय मे!

    कतहु

    भाभंस नहि।

    एकटा खुनिया धुन पर

    तुमकलाम

    सभ ठामः

    खाँखीक हाहुत्ती नोक पर

    टाँगल

    हमरा लोकनिक मोनप्रान।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एना त नहि जे (पृष्ठ 49)
    • रचनाकार : हरेकृष्ण झा
    • प्रकाशन : रक्तमंजरी प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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