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साइकिल की कहानी

cycle ki kahani

कृष्ण कल्पित

अन्य

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कृष्ण कल्पित

साइकिल की कहानी

कृष्ण कल्पित

और अधिककृष्ण कल्पित

    यह मनुष्य से भी अधिक मानवीय है

    चलती हुई कोई उम्मीद

    ठहरी हुई एक संभावना

    उड़ती हुई पतंग की अँगुलियों की ठुमक

    और पाँवों में चपलता का अलिखित आख्यान

    इसे इसकी छाया से भी पहचाना जा सकता है

    मूषक पर गणेश

    बैल पर शिवजी

    सिंह पर दुर्गा

    मयूर पर कार्तिक

    हाथी पर इंद्र

    हंस पर सरस्वती

    उल्लू पर लक्ष्मी

    भैंसे पर यमराज

    बी. एम. डब्ल्यू पर महाजन

    विमान पर राष्ट्राध्यक्ष

    गधे पर मुल्ला नसररुद्दीन

    रेलगाड़ी पर भीड़

    लेकिन साइकिल पर हर बार कोई मनुष्य

    कोई हारा-थका मज़दूर

    स्कूल जाता बच्चा

    या फिर पटना की सड़कों पर

    जनकवि लालधुआँ की पत्नी

    कैरियर पर सिलाई मशीन बाँधे हुए

    साइकिल अकेली सवारी है दुनिया में

    जो किसी देवता की नहीं है

    साइकिल का कोई शोकगीत नहीं हो सकता

    वह जीवन की तरफ़ दौड़ती हुई अकेली

    मशीन है मनुष्य और मशीन की यह सबसे प्राचीन

    दोस्ती है जिसे कविता में लिखा पंजाबी कवि

    अमरजीत चंदन ने और सिनेमा में दिखाया

    वित्तोरियो दे सिका ने ‘बाइसिकल थीफ़’ में

    ग़रीबी, यातना और अपमान की जिन

    अँधेरी और तंग गलियों में

    मनुष्यता रहती है

    वहाँ तक सिर्फ़ साइकिल जा सकती है

    घटना-स्थल पर पाई गई सिर्फ़ इस बात से

    हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते कि

    साइकिल का इस्तेमाल मनुष्यता के विरोध में

    किया गया जब लाशें उठा ली गई थीं

    और बारूद का धुआँ छट गया था तब

    साइकिल के दो चमकते हुए चक्के सड़क के

    बीचोबीच पड़े हुए थे घंटी बहुत दूर

    जा गिरी थी और वह टिफ़िन कैरियर जिसमें

    रोटी की जगह बम रखा हुआ था कहीं

    ख़लाओं में खो गया था।

    एक साइकिल की कहानी

    अंततः एक मनुष्य की कहानी है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृष्ण कल्पित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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