गिरीडीह बहुत अच्छा शहर था

giriDih bahut achchha shahr tha

विनय सौरभ

विनय सौरभ

गिरीडीह बहुत अच्छा शहर था

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    उस शहर में मत जाओ

    जहाँ तुम्हारा बचपन गुज़रा

    अब वह वैसा नहीं मिलेगा

    जिस घर में तुम किराएदार थे

    वहाँ कोई और होगा

    तुम उजबक की तरह

    खपरैल वाले उस घर के दरवाज़े पर खड़े होगे और

    कोई तुम्हें पहचान नहीं पाएगा!

    वह लंबा-सा ख़ाली टीला जहाँ

    तुमने जमकर पतंगबाज़ी की थी

    अब वहाँ अनगिनत घरों की क़तारें होंगी

    तुम किस-किसको बताओगे कि

    पैंतीस साल पहले मैं यहाँ रहता था!

    वह तालाब पाट दिया गया होगा

    जहाँ तुम नहाए, तैरना सीखा

    साथ खेलते बच्चे किसी और शहर को चले गए होंगे

    और जो होंगे उन्हें कैसे पहचानोगे तुम?

    ज़ाहिर है तुम अपने स्कूल भी जाओगे

    संभव है कि वह किसी बड़ी इमारत के पीछे छुप गया होगा!

    शहर से चुपचाप गुज़र जाओ

    यही तुम्हारे हक़ में अच्छा होगा

    अपने आँसुओं को रोको

    कोई पुराना सहपाठी

    कोई पुराना पेड़ मिलेगा विनय सौरभ!

    बड़ा चौक पर दोस्त के पिता की नाश्ते की

    उस छोटी-सी दुकान में तो जाओगे

    पर क्या वह मिलेगी?

    कोयले की आग से धुआँती छतें

    और समोसे की वह ख़ुशबू कहीं दर्ज़ कर लो

    पर उधर मत जाओ

    बड़ा चौक अब बहुत बदल गया है

    जीवन टॉकीज़ बंद हो चुका है

    जहाँ तुमने अपने जीवन की पहली फ़िल्म 'मुक़द्दर का सिकंदर' देखी

    तुम्हें मंदिर से कुछ ख़ास लगाव तो था

    तुम कालीबाड़ी क्यों जाना चाहते हो?

    उस चौक पर अब तृप्ति नाम का कोई रेस्तराँ नहीं है

    मकतपुर चौक पर सब्ज़ियाँ आज भी मिलती हैं

    और रंजीत स्टूडियो कब का बंद हो चुका

    डोमा साव के मिठाइयों की दुकान है

    पर उसकी नमकीन का स्वाद क्या वैसा ही होगा!

    मोती पिक्चर पैलेस के आगे अब चाट के ठेले नहीं लगते

    फ़िल्मी गानों की क़िताबें नहीं बिकतीं

    अब कोई टिकट ब्लैक नहीं होता

    अब वह सिनेमाघर बदहाल और बदरंग हो चुका है,

    उसे देखकर तकलीफ़ से भर जाओगे

    जहाँ स्कूल से भागकर नून शो की

    कई फ़िल्में देखने की याद बाक़ी है!

    पिता के दफ़्तर की याद तो होगी

    कचहरी के पास वहाँ भी जाओगे

    पर वह इमारत मिलेगी!

    नाहक़ ही परेशान हो जाओगे तुम

    उस शहर में मत जाना

    याद करना कि वह एक बेहतरीन समय था तुम्हारा

    जहाँ दीवारों पर लगने वाले फ़िल्मी पोस्टरों की

    तुमने अपनी किताबों-कॉपियों पर जिल्दें चढ़ाईं

    इस तरह से तुम्हें अपनी भाई-बहन भी याद आएँगे

    इस तरह पिता ख़यालों में आएँगे

    तब शहर के किताब की दुकानें भी याद आएँगी

    रहमान दर्ज़ी की याद आएगी

    फ़ुटपाथ पर लगने वाली चप्पल की अनगिनत दुकानें

    और बाटा में पहली बार ख़रीदा गया स्कूल का जूता याद आएगा

    स्कूल के दिनों का वह स्वेटर पीछा करेगा

    जो दिवंगत बहन ने पहली बार तुम्हारे लिए बनाया!

    उस शहर में मत जाना

    इस तरह से तुम दु:ख के दरिया में डूबोगे

    तुम लौटोगे, तुम्हारी पुरानी बातें कौन सुनेगा

    अब तो वह माँ भी नहीं रही जो बात-बात में कहती थी:

    गिरिडीह बहुत अच्छा शहर था!

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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