Font by Mehr Nastaliq Web

चिट्ठी

chitthi

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

प्रतिभा शतपथी

अन्य

अन्य

और अधिकप्रतिभा शतपथी

    बँध गये है सारे आवेग

    हँसी, रूलाई, व्यग्रता

    जो साँसें रोककर

    जला डालते तुम्हें

    यदि मिला होता उन्हें

    एक फर्द रंगीन काग़ज़ का सहारा।

    यह सब उन दिनों की बात है।

    मृत सैनिक के प्रेमपत्र-सी बीती यादें

    आँसू डबडबाई आँखों से निहारती हैं

    स्नायु बिखर जाते हैं

    सौ टुकड़ों में बँटकर

    सारी शिराएँ गुड़ी-मुड़ी

    घाव में कीड़े

    जबकि आवेग,

    हँसी, रुलाई, व्यग्रता

    उसी तरह अनाहत हैं।

    अब काग़ज़ के एक फर्द में बँधा पड़ा है

    उस जंगली झरने का गीत

    काँप रहा है

    रट लगाये है अब तक

    झर... झर...

    मानों वह चिट्ठी से निकल आयेगा

    छलाँग लगाकर

    और हराभरा कर देगा

    दुनिया के सारे धान के खेत।

    सहेजकर रखने की

    सुरक्षित जगह पाकर

    उस दिन एक चिट्ठी फाड़ते समय

    लगा—तुम तो हो ही

    रहे चिट्ठी, क्या फर्क पड़ता है।

    आज तुम नहीं हो,

    यादों में गुमसुम बैठे

    सारे आवेग

    प्रेत की अट्टहास भरी हँसी की तरह

    दहला रहे हैं चारों दिशाएँ

    तोड़-मरोड़कर चबा रहा है हाथ-पैर

    तो कुछ देर बाद

    एक डाल से दूसरी डाल तक बँधे

    काले शामियाना के नीचे

    पुकार रहा है

    धान के रंग का कपोत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुम्हारे लिए हर बार (पृष्ठ 21)
    • रचनाकार : प्रतिभा शतपथी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY