छुओ

chhuo

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

     

    उन चीज़ों को छुओ जो तुम्हारे सामने मेज़ पर रखी हैं
    घड़ी क़लमदान एक पुरानी चिट्ठी
    बुद्ध की प्रतिमा बेर्टोल्ट ब्रेश्ट और चे गेवारा की तस्वीरें
    दराज़ खोलकर उसकी पुरानी उदासी को छुओ
    शब्दों की अँगुलियों से एक ख़ाली काग़ज़ को छुओ
    वॉन गॉग की पेंटिंग के स्थिर जल को एक कंकड़ की तरह छुओ 
    जो उसमें जीवन की हलचल शुरू कर देता है[1]
    अपने माथे को छुओ 
    और देर तक उसे थामे रहने में शर्म महसूस मत करो
    छूने के लिए ज़रूरी नहीं कोई बिल्कुल पास में बैठा हो
    बहुत दूर से भी छूना संभव है
    उस चिड़िया की तरह दूर से ही जो अपने अंडों को सेती रहती है

    कृपया छुएँ नहीं या छूना मना है जैसे वाक्यों पर विश्वास मत करो
    यह लंबे समय से चला आ रहा एक षड्यंत्र है
    तमाम धर्मगुरु ध्वजा-पताका-मुकुट-उत्तरीयधारी
    बमबाज़ जंगख़ोर सबको एक दूसरे से दूर रखने के पक्ष में हैं
    वे जितनी गंदगी जितना मलबा उगलते हैं
    उसे छूकर ही साफ़ किया जा सकता है
    इसलिए भी छुओ भले ही इससे चीज़ें उलट-पुलट हो जाएँ

    इस तरह मत छुओ जैसे भगवान महंत मठाधीश भक्त चेले
    एक दूसरे के सर और पैर छूते हैं
    बल्कि ऐसे छुओ जैसे 
    लंबी घासें चाँद-तारों को छूने-छूने को होती हैं[2]
    अपने भीतर जाओ और एक नमी को छुओ
    देखो वह बची हुई है या नहीं इस निर्मम समय में।
    __________________________________
    [1] जापानी फ़िल्मकार अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म ‘ड्रीम्स’ का एक अंश।
    [2] शमशेर बहादुर सिंह की एक कविता-पंक्ति।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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