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प्रेम की छह कविताएँ

chhah prem kavitayen

प्रत्यूष चंद्र मिश्र

प्रत्यूष चंद्र मिश्र

प्रेम की छह कविताएँ

प्रत्यूष चंद्र मिश्र

और अधिकप्रत्यूष चंद्र मिश्र


    एक

    गोल है यह धरती
    गोल है बारिश की बूँदें
    गोल है माँ की रोटी
    गोल है तुम्हारा चेहरा।

    दो

    समय का एक टुकड़ा था 
    हमारे तुम्हारे बीच
    पत्तों के बीच से चलती हवा
    घास पर बारिश
    और मिट्टी की नमी
    तुम्हारी याद है बारिश की गंध
    और ठहरा हुआ मौसम।

    तीन

    बीत गया हिचकियों का दिन
    बीत गया अगस्त और सितंबर
    हाथों में हाथ लेने का दिन बीत गया
    बीत गया एक-दूसरे को देखकर रोने का दिन
    बस बची रही तुम्हारी याद
    और यह दिल।

    चार

    हम जानते थे अलग-अलग होंगी हमारी राहें
    हम जानते थे ऐसा ही होता है हर बार
    हमने कहानियाँ पढ़ी थी
    बुजुर्गों से क़िस्से सुने थे
    महसूसा था गीतों का दर्द

    ग़ज़लों की आवाज़
    हृदय की धड़कन
    हम सब कुछ जानते थे
    फिर भी।

    पाँच

    रेत पर हमने भी लिखा
    काग़ज़ की नाव हमने भी बनाई
    हमने भी बनाए हवा में कुछ चित्र
    हमने भी झेली बेमौसम की बरसात
    हमने भी बढ़ाया असमय अपना तापमान
    हमने भी किया तुम्हारे नाम के नीचे अपना हस्ताक्षर।

    छह

    उस दिन मैं ज़ार-ज़ार रोया था
    तुम बगैर मुड़े आगे बढ़ गई थी
    मैं बगैर सोचे पीछे लौट आया था
    उस दिन मैंने दुख को जाना था
    और शायद दुख ने मुझे
    उस रात दोनों जगे रहे।
    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रत्यूष चंद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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