चारि शीर्षक खंडमे एक टा महाकाव्यात्मक भाव-यात्रा
chari shirshak khanDme ek ta mahakavyatmak bhaav yatra
गंगेश गुंजन
Gangesh Gunjan
चारि शीर्षक खंडमे एक टा महाकाव्यात्मक भाव-यात्रा
chari shirshak khanDme ek ta mahakavyatmak bhaav yatra
Gangesh Gunjan
गंगेश गुंजन
और अधिकगंगेश गुंजन
हमर कथा
अहाँक चुप आँखि
आ हमर मुखर ठोढ़क अलौकिक उद्गार केर
एक टा उदास इतिहास भरि।
हमर परिचय
कोनो सुन्दर पार्क के
मखमली दूबिपर कयल एकान्त कल्पना सन
समय सापेक्ष अपनापन भरि।
एकतरफा ट्रैफिकक
दूतरफा फुटपाथ—
हम कहियो गुजरि गेलहुँ
दू विपरीत दिशामे।
हमर आयु
अहाँक चिर मौन अपेक्षा,
हमर निर्विरोध निर्विकार
बताह स्वीकृतिक,
स्पष्ट गीत।
स्वयं के अन्हार में हेराय गेल
किछु आखर
हम कहियो दोहराइयो नञि सकलहुँ।
हमर यात्रा
हम एक टा छाया संगे
अन्हारमे चलैत रहलहुँ।
- पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 148)
- संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
- रचनाकार : गंगेश गुंजन
- प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, सुपौल, बिहार
- संस्करण : 1971
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