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यात्री

yatri

अनुवाद : दिनेश चमोला

मिं: तु वुं

मिं: तु वुं

यात्री

मिं: तु वुं

और अधिकमिं: तु वुं

    फैलता है सूर्य का प्रकाश

    होते हैं प्रारंभ

    दिन के क्रियाकलाप

    वह आकार खड़ा होता है

    वह कहता हुआ

    और फिर चला जाता है वह

    जिस रास्ते आया था

    बिना विदाई के

    सूर्य की किरण की तरह

    कार्य सरल होने पर

    नोट किया मैंने

    इसलिए मैंने उसे ढूँढ़ा

    घर-घर के भीतर

    पूरे गाँव में

    सूरज कुछ ऊपर गया

    हथेली के शिखर से ऊपर

    भीड़ भरे बाज़ार में

    मैंने उसे खोजा

    भीड़ को धकेलते हुए

    बाज़ार के बंद होने पर भी

    मैं उसे नहीं ढूँढ़ सका

    बैल गाड़ियों के स्थान पर

    नदिया के किनारे

    बरगद के नीचे

    मंदिर की मूर्ति में

    तालाब के आसपास

    गाँव के द्वारों पर

    और नानवाइयों के पास

    रह गए हैं

    मेरे पैरों के निशान

    मैंने याद किया उसका चेहरा

    उसकी घंटी-सी आवाज़ सुनी

    लेकिन मैं कैसे ठहर पाता?

    नहीं मिला मुझे

    कोई सुराग़ या संकेत

    शांत होती

    सूर्य की रोशनी तक

    और

    सूर्य के पश्चिम जाने तक

    दिन निकल

    दिन के कार्य बढ़ गए

    फिर आया वह

    मैंने ढूँढ़ना चाहा

    कहीं बहुत-सी बातें

    और फिर वह चला गया

    एक सूर्य किरण की तरह

    अब लगा सकता हूँ

    मैं अनुमान

    उसकी प्रवृत्ति का

    घर में एक अच्छी जगह

    फैलाई मैंने चटाई अच्छी तरह

    मैंने पव कटोरा तैयार किया

    और प्रतीक्षा की

    जब वह आता है

    चला जाता है

    सूर्य किरण में यात्री की तरह

    जब जाएगा वह

    तो

    फिर आएगा सूर्य किरण में

    यात्री की तरह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 53)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : मिं: तु वुं
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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