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जलकुंभी मार्ग-29

jalkumbhi maarg 29

अनुवाद : दिनेश चमोला

आचार्य ज़ौजी

आचार्य ज़ौजी

जलकुंभी मार्ग-29

आचार्य ज़ौजी

और अधिकआचार्य ज़ौजी

    दक्षिणी बयार

    क़ैद कर लेती है

    लहराते पानी के

    झोंकों से उठता है सफ़ेद झाग

    लहर होती है

    जल की संगिनी

    राहुरत्न

    सँकरी घाटी का अनुयायी

    वह जाना चाहता है

    उतराती धारा के साथ

    लेकिन

    तब रुक जाता है सफ़ेद झाग

    और उठती हुई लहरें

    बेचारी जलकुंभी!

    लहरों की थपेड़ों से

    बहती जाती है पीछे-पीछे

    बहने पर भी

    वह जाती है सँकरी घाटी के नीचे

    और पहुँचती है

    समुद्र के दृश्य में

    उतरते पानी और

    उल्टी हवा में

    जलकुंभी कुमारी!

    फिर सोचकर भिड़ाती है कोई युक्ति

    इस ज्वारीय घाटी के संसार में

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 50)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : आचार्य ज़ौजी
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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