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जलकुंभी मार्ग-13

jalkumbhi maarg 13

अनुवाद : दिनेश चमोला

आचार्य ज़ौजी

आचार्य ज़ौजी

जलकुंभी मार्ग-13

आचार्य ज़ौजी

और अधिकआचार्य ज़ौजी

    देहाती पैदावारों से भरी देहाती नाव

    विश्राम करती है

    ज्वारीय लहरों में

    नाव पर चढ़ते हुए

    ख़रीदते हैं

    गुड़ और सभी प्रकार की दालें

    एक मल्लाह की किश्ती

    विश्राम करती है

    जाल में फँसी मछलियों के साथ

    ज्वारीय सँकरी घाटी में

    छुटभैया दानव और हर प्रकार की मछली

    तब ख़रीदना

    जब आना हो इसके ऊपर

    कुम्हारों की बस्ती के निकट

    ज्वारीय लहरों पर विश्राम

    जहाँ होते हैं

    अनगिनत क़िस्म के बर्तन

    तब ख़रीदना

    जब आओगे इस पर

    बाँस के बेड़े के समीप

    सँकरी ज्वारीय घाटी में विश्राम करती

    रहते हैं जहाँ

    पतले बाँस और दूसरी तमाम चीज़ें

    तब ख़रीदना

    जब आओगे इस पर

    रत्न सवार होता है

    बहता है लहरों में

    ऊपर और नीचे

    दृढ़ता से बार-बार

    बेचना है कुछ?

    नहीं, दूसरों की तरह नहीं।

    नीले पर पीली

    बहाव में अच्छी

    लहरों को स्वीकार करती हुई

    सँकरी घाटी में

    बहती हुई हवा में

    खोलती है वह दुकान

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 45)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : आचार्य ज़ौजी
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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