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घर जहाँ पैदा हुआ था

ghar jahan paida hua tha

दिमितेर गुन्दोव

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दिमितेर गुन्दोव

घर जहाँ पैदा हुआ था

दिमितेर गुन्दोव

और अधिकदिमितेर गुन्दोव

    कितने ही साल गए-आए

    देखा था जब तुमको पहले

    डेलिया फले मधु ऋतु में

    हेमंत कई आकर बीते।

    रहे शांति से लोग यहाँ सब

    किंतु आज वे बदल गए हैं

    रुकी नहीं जीवन की धारा

    दूर रहा था जब घर से मैं।

    याद फ़र्श के पत्थर मुझको

    लटके सदाबहार भित्ति से

    प्यार किशोरी पातीं अब भी

    जैसा पाती थीं पहले वे।

    पथ के पार देखता हूँ मैं

    मौन बीच पीला पड़ता है

    छोड़ पाया गीत पड़ोसी

    दूर रहा था जब घर से मैं।

    इन सब गए हुए सालों में

    चला अहाते में फ़व्वारा

    अँगूर रहे पकते ऐसे

    है जैसे कुछ भी नहीं हुआ।

    बाग़ फलों का श्वेत मंजरित

    दक्षिणी पवन था ताप मुदित

    निशि का नभ तारों से उजला

    दूर रहा था जब घर से मैं।

    गरमी की शामें छाया खो

    जब निर्मल नीली हो जातीं

    मैं अतीत की यादें करता

    सुनता हूँ कल-कल सरिता की।

    सुनता हूँ मित्रों की बातें

    घूर्ण मेघ पावस-दिन गाता

    फूल पंखुरी जीवन पातीं

    घर से दूर यहाँ जब रहता।

    किंतु वस्तुतः नहीं यहाँ मैं

    तब फिर अब मैं भला कहाँ हूँ?

    गप्प मारते दो किसान हैं—

    मैं सुनता हूँ, सच कहता हूँ।

    दूर रहूँ या पास तुम्हारे

    तुमको ही सोचा करता हूँ

    शरद, शीत या मधु वसंत हो

    पास तुम्हारे ही रहता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बल्गारियाई कविताएँ (पृष्ठ 57)
    • संपादक : रमेश कौशिक
    • रचनाकार : दिमितेर गुन्दोव
    • प्रकाशन : पराग प्रकाशन
    • संस्करण : 1985

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