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असंगति

asangati

दोरा गाबे

अन्य

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दोरा गाबे

असंगति

दोरा गाबे

और अधिकदोरा गाबे

    मेरा दुःख नीरस उदास पावस

    जो प्रभात से पहले

    खिड़की के शीशे खटकाता

    और कभी चाँदनी सरकती

    सिर के बालों पर से

    करती निद्रा में प्रवेश

    तब आँसू बनकर झरता।

    लेकिन जब पौ के फटने पर

    खोला करता हूँ मैं खिड़की

    उड़ जाता है मेरा दुःख

    आगामी दिन के सम्मुख।

    तरुणाई, श्रम औ' आतप के दिन!

    मेरे सिर पर से फुरती से

    चिड़िया एक उड़ी जाती है

    अपनी बाँहों में

    अनुभव करता हूँ

    मैं तरुणाई

    अपनी चाल तेज़ करता हूँ

    तभी एक बच्चे से आँखें मिल जाती हैं—

    नीलम निर्झर में नहा जाता हूँ।

    लेकिन शाम हुई जैसे ही

    पहले जैसा अचल अटल

    दुःख मेरा आता है लौट

    अनुभव करता हूँ

    सूरज बिना रह सकता हूँ

    दुःख के बिना...

    स्रोत :
    • पुस्तक : बल्गारियाई कविताएँ (पृष्ठ 39)
    • संपादक : रमेश कौशिक
    • रचनाकार : दोरा गाबे
    • प्रकाशन : पराग प्रकाशन
    • संस्करण : 1985

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