आदमी रास्ते के किनारे अपने बोझ के पास बैठा था कि कोई आए तो उसकी मदद से वह बोझ को सिर पर उठाकर रख सके।

कोई नहीं रहा था।

एक आदमी दिखा। लेकिन उसके सिर पर बोझ था।

उसने इंतज़ार करते आदमी से कहा कि वह उसका बोझ उतरवा दे तो भला होगा।

उसने बताया कि वह बहुत दूर से और देर से किसी आदमी को पाने की कोशिश कर रहा था जो उसके सिर पर रखे बोझ को आहिस्ता से नीचे रखवा सके। दो की मदद से उसे उसने सिर पर रखा था और दो की मदद से ही उसे नीचे रखा जा सकता था।

इंतज़ार करते आदमी ने उसका बोझ नीचे रखवाया।

जो आदमी बाद में आया था उसने पहले से बैठे आदमी से कहा कि मैं तुम्हारा बोझ तुम्हारे सिर पर रखने में तुम्हारी मदद करता हूँ ताकि तुम अपने सफ़र पर आगे निकल सको। तुम्हारे जाने के बाद मेरा जाना होगा। तब तक मैं इंतज़ार करूँगा। तब तक मैं इंतज़ार करूँगा ऐसे आदमी का जो मेरा बोझ मेरे सिर पर रखने में मदद करे वैसे ही जैसे तुमने मेरी और मैंने तुम्हारी मदद की। तुम्हारे जाने के बाद जो आदमी आए हो सकता है उसके सिर पर बोझ हो। तो मैं उसका बोझ उतरवाऊँगा। फिर वह मेरा बोझ मेरे सिर पर रखवाएगा। और ख़ुद अपने बोझ के साथ बैठा रहेगा कि कोई आए और उसका बोझ उसके सिर पर रखवाने में उसकी मदद करे जिसे लेकर वह आगे निकल पड़ेगा।

और जो आदमी छूट गया है वह इंतज़ार करेगा कि कोई आए।

स्रोत :
  • रचनाकार : देवी प्रसाद मिश्र
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए