भूखा है भगवान्

bhukha hai bhagwan

नित्यानंद महापात्र

नित्यानंद महापात्र

भूखा है भगवान्

नित्यानंद महापात्र

और अधिकनित्यानंद महापात्र

    भूदान-भूदान कौन माँगता है? कौन देगा किसे दान?

    माता के स्तन से अकेला ही हिस्सा बँटाता है, कौन है वह भाग्यवान?

    'यज्ञी यज्ञी' आवाज़ आती है, कौन है उद्गाता उस यज्ञ का?

    अपने पेट में चारु हवि भरकर करते हो क्या स्वाहाकार?

    बंद करो यह क्रंदन चीत्कार भूमिदान, भूमिदान।

    मेरा नंदी-घोष रथ पुकारता है, भूखा है भगवान्।

    पानी का लगान कौन किससे लेता है हवा में रसीद कौन काटता है?

    आकाश के प्रकाश पर किसका अधिकार है, इस्तमरारी पट्टा किसका है?

    इस भूमि को तोड़कर किसने रखा है ख़ास अपने अधिकार में

    माता के पेट में कौन आया था दलील दस्तावेज़ लेकर?

    कौन निर्भूमि बादशाह आज करता है भूमिदान?

    सार्वभौम शक्ति पुकारती है भूखा है भगवान्।

    अरे इंद्र इंद्रिय-भोगी! अरे सहस्र-योनि!

    तुम्हारे ही पाप के रास्ते में पड़ी है देखो वह अहल्या भूमि।

    मैं राम इसका उद्धार करूँगा, मैं जगज्जेता बनूँगा

    मुझे दान देगा जनक का हाथ, खेत में सीता को जन्म देकर

    शिवधनु खींचता हूँ, सुनो, काँपो मत।

    सँभल, सँभल, अरे वज्रायुध, भूखा है भगवान्।

    मथुरा-नगर में बैठा है कंस, उसने धनु-यात्रा रचाई है,

    कुबलया शक्ति से बलवान, चापलूस चाणूर के उत्पात हो रहे हैं।

    ऊपर से दिखाकर दयावान का भाव, परिणाम विषमय निकलता है।

    मंच पर बैठकर सोचता है कि मैं कृष्ण और बलराम को मारूँगा

    कपट-मूलक जितनी भी यह पद्धति है, उसका अवसान होकर रहेगा

    हल को चलाने वाला हलधर कहता है, भूखा है भगवान्।

    क्षुद्र मानव आज आया है, भद्र वामन के रूप में।

    भिक्षा देने की दीक्षा पृथ्वी के किस राजा ने ली है?

    आज दाता की भावना से हाथ से कमंडल उठाकर जल दो।

    त्रिपाद भूमिदान देकर मुझे अपने मन का बल दिखाओ।

    सुनो सुनो रे दानशील मानव! तुम बली से भी बलवान हो

    मेरे नाभि-कमल से नाद उठता है, भूखा है भगवान्।

    मैं प्रथम पाद में माँगता हूँ मन से दो अपहरण करने वालो।

    द्वितीय पाद में तुम्हारी बुद्धि की कलम माँगता हूँ, कलम चलाने वालो!

    मैं तृतीय पाद में माँगता हूँ तीर्थ-जल तुम्हारे श्रम का पसीना

    मनुष्य प्रेम में मन भर जाएगा, जंजाल टल जाएगा,

    भूदान-भूदान चीत्कार से होगा दुःख का अवसान

    इधर नाभि-कमल से श्रम पुकारता है, भूखा है भगवान्।

    यह भूमिदान नहीं है, तिल-कांचन है जो प्रायश्चित में दिया जाता है।

    अरे मुर्दों! अरे भूमि के मालिको! सुनो, मैं तुम्हारे हित की बात कहता हूँ।

    ये भिक्षा नहीं, यह तुम्हारी शिक्षा है, गुरु दीक्षा देता है,

    पकड़ो अक्षत-अक्षत में यदि यमपुर से बचना चाहते हो

    मैं वासुकी भूमि-भार ढोता हूँ, मेरा कल्याण लो,

    धनी घर के बच्चो, तुम सुनो, भूखा है भगवान्।

    उधर उद्योग-पर्व लगाता है वह श्रेणीहीन शकुनी

    विप्लव करो! विप्लव करो! यह ध्वनि बार-बार उठती है

    श्रमिक के पसीने से पाप नीचे से घुल जाता है

    इससे बढ़कर विप्लव कहीं नहीं हुआ, नहीं हुआ, नहीं हुआ,

    रक्त की नदी के बदले में प्रेम की बाढ़ ज़ोर पकड़ेगी,

    मेरा नंदि-घोष रथ पुकारता है, भूखा है भगवान्।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 73)
    • रचनाकार : नित्यानंद महापात्र
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

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