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भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ

bhrashtachar ki jay bvalau

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    देखेउ केत्ता चलि पाई वह अन्ना की छुक छुक गाड़ी

    भ्रष्टाचार कि जय ब्वालव अब दे ताड़ी भाइ दे ताड़ी

    अमरमणी का ना ख्वाजउ तुम अउ मधुमणि मा ना खोएउ

    बन्धु बनइ के मउका मा जब होएउ तब रेड्डी होएउ

    बाकी राह बतइब करिहइँ कनिमोझी अउ कलमाड़ी

    भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ अब दे ताड़ी भाइ दे ताड़ी

    चारा खादि यूरिया खाइनि यान हवाई खाइ गए

    हजम कइसे हुइ पावइ कुन्टलन दवाई खाइ गए

    सी बी आई ने भी केवल फटी फटाई ही फाड़ी

    भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ अब दे ताड़ी भाइ दे ताड़ी

    वोट नोट के चक्कर मा कुछु अमर भए कुछु मुरदे हैं

    जिनके नाउँ आइ सके वइ सब सरकारी गुरदे हैं

    जिनकी दम पर बड़ी बिल्यावा अपने पंजे पर ठाढ़ी

    भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ अब दे ताड़ी भाइ दे ताड़ी

    रहु-रहु बसु-बसु करति-करति यदुरप्पा का बजिगा बाजा

    चका चौंध मा परिके हमका भूलि जाएउ राजा

    चुप हुइगेन जब रामदेव जी हुइगे कुरता सलवारी

    भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ अब दे ताड़ी भाइ दे ताड़ी

    कीमति हइ कम इन्सानन की सैन्डिल के रुतबा जागे

    कुछु ताने हइँ पीछे ते कुछु प्वाँछति हइँ आगे आगे

    टकहउ घूमइ रोब दिखावति जलवा काटइँ सरकारी

    भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ अब दे ताड़ी भाइ दे ताड़ी

    काटि रहे जनता का हइँ यइ मनमा बड़े सयाने हइँ

    समय परे पर देखे हन बकरी जइसन मिमियाने हइँ

    नसा चूर हुइहै सगरो जब खोपड़िप हुई हइ बमबारी

    भ्रष्टाचार कि जय ब्वालउ अब दे ताड़ी भाइ दे ताड़ी

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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