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भोजन और भोज्य

bhojan aur bhojya

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार

ख़लील जिब्रान

अन्य

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ख़लील जिब्रान

भोजन और भोज्य

ख़लील जिब्रान

और अधिकख़लील जिब्रान

     

    तब एक सराय के बूढ़े मालिक ने प्रश्न किया: भोजन और भोज्य का क्या संबंध है?

    अलमुस्तफ़ा ने उत्तर दिया :

    अच्छा होता कि हम पृथ्वी के गंध-सेवन से ही जीवित रह सकते और फूल-पत्तों को
    जीवन देने वाली प्रकाश-किरणें ही हमें जीवनरस से सींचने में पर्याप्त होतीं।

    परंतु यदि तुम्हारी क्षुधा जीव-हिंसा के बिना शांत नहीं होती और नवजात वत्स
    को उसकी माता के स्तन से छुड़ाकर ही तुम्हारी तृष्णा शांत हो सकती है, तो यह काम भी
    परम देवता के चरणों में अर्घ्य अर्पण करने की भावना से ही करना चाहिए।

    यही समझना कि वन-उपवन के इन निष्पाप जीवों की बलि उनसे अधिक शुद्ध
    मानव-आत्मा की परितुष्टि के लिए विश्वनियंता की मौन आज्ञा से दी जा रही है। उनका
    वध करते हुए उनके प्रति स्वगत ही यह कहना :

    —जो शक्ति तुम्हारा वध कर रही है, उसके लिए मेरी भी बलि दी जाएगी।

    —क्योंकि जिस क़ानून ने तुम्हें मुझ वधिक के हाथ में दिया है, वही मुझे भी मुझसे
    अधिक बली वधिक के हाथ में दे देगा।

    —तुम्हारा रक्त और मेरा रक्त दोनों का एक ही हेतु है—एक ही विश्व-वृक्ष का पोषण
    करना।

    जब तुम किसी सेब को अपने जबड़ों में कुचलो तो दिल-ही-दिल उससे कहो :

    —तुम्हारे बीज मेरी देह में जीवित रहेंगे।

    —मेरे हृदय में उनकी कलियाँ खिलेंगी।

    —उनकी गंध मेरी साँस बनेगी।

    —और हम साथ-साथ सब मौसमों की बहार लूटेंगे।

    भट्ठी में आसव के लिए जब तुम द्राक्षोद्यान से द्राक्षा बटोरो, तो मन-ही-मन उससे यह
    कहना न भूलना :

    मेरी देह भी द्राक्षोद्यान है और मेरे अंग-प्रत्यंग भी द्राक्षा-भट्ठी में रिसने के लिए
    बटोरे जाएँगे।

    —नवीन द्राक्षा-मधु के समान मुझे भी चिर काल तक बंद बोतलों में भरे रहना
    पड़ेगा।

    और सर्दी में जब द्राक्षा-मधु निकालो तो उसके हर प्याले के लिए तुम्हारे मन से एक
    गीत निकले। वह गीत तुम्हें वसंत के दिनों, अंगूरी बेलों और द्राक्षा-भट्टी की याद अवश्य
    दिलाए—यह ध्यान रखना।


                                           
    स्रोत :
    • पुस्तक : मसीहा
    • रचनाकार : ख़लील जिब्रान
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2016

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