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भतब 'री

bhatab ri

अमरनाथ झा ‘अमर’

अन्य

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और अधिकअमरनाथ झा ‘अमर’

    टोल-टोलमे गोल- गौलैसी घरे-घरे पैसल छै झगड़ा

    तैं त' बाड़ब भतब'री केर भ' रहलै रगड़म-रगड़ा।

    ह'म बड़ा तँ ह'म बड़ा हो प्रमुख एकर अछि कारण

    मारल जा रहलै समाज, तेँ शीघ्र हो एकर निवारण।

    मानि ने रहलै मान्यजनक किछु पाइ अनैतिक अरजि धनाढ्य

    से सभ चाहय हमरहि जुतिएं चलै स'भ, हमरहि हो आढ्य।

    बड़ भेलाह अछि अकबाली छन्हि हिनकहि टा टाड़ा तेल

    हम ककरहु सँ कम्म कोनो की इएह सोच तोड़ि रहलै मेल।

    ईर्खा खा रहलै समाज केँ द्वेष मनुक्खक गर मे ह’री

    दोसरक उन्नति नहिं सोहाइ तेँ, चटदे क' लैए भतबरी।

    सौजन्ये केर लोप भेला सँ अनेक प्रकारक हो गड़बड़ी

    बड़ी-भात मे संग रहय जे हो तकरा संग नहिं भतबरी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 59)
    • रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
    • प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
    • संस्करण : 2021

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